मैथिलीक महान-माजल-निस्सन-निस्स्वार्थ सांगोपांग-समर्पित रंगकर्मी श्रीकान्त मंडल
(जनवरी 1936
- 7 जनवरी 1994)
-भास्करानंद झा भास्कर
साल्ट
लेक
, कोलकाता
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युवा
श्रीकांत मंडल
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श्रीकांत मंडलजी (1936-1994)क
नाम मैथिली रंगमंचक इतिहासमे बहुप्रतिभाशाली-बहुआयामी महान-माजल-निस्सन-निस्स्वार्थ सांगोपांग-समर्पित रंगकर्मी के रुपमे स्वर्णांकित अछि। कलकत्ताक मैथिली नाट्यांदोलन
के सक्रियता, गतिशीलता तथा नव आलोक प्रदान करबामे हुनक सहयोग
अन्यतम रहल छन्हि। मैथिलीक संस्था-संगठनक गठन,पोथी प्रकाशन, नाट्य-मंचन,
अभिनय-निर्देशन, मंच-आलोक व्यवस्था ओ प्रबंधन सभ क्षेत्रमे हुनक विशिष्ट- उत्कॄष्ट योगदान-अवदान रहल छन्हि। मैथिली रंगमंचक हुनक
अतुल्य समर्पण हुनका विशेष बनबैत अछि। इएह कारण छैक जे आइ ओ मैथिली रंगमंचक उन्नयन
एवं विकासमे सर्बाधिक योगदान देनिहार रंगकर्मीक नामसूचीमे चर्चित-सुप्रतिष्ठित नाम छैथ।
मैथिलीक अपन गौरवपूर्ण
इतिहास आओर समृद्ध साहित्य रहल अछि । आधुनिक भारतीय भाषादिमे मैथिली नाट्य-सम्पदाक गौरवशाली परम्परा आ ओकर विशाल पृष्ठभूमि एहि साहित्यक प्रारंभिकावस्थासँ
अविच्छिन्न रूपसँ चलैत आबि रहल अछि। मैथिली नाटक आ
रंगमंचक इतिहास ज्योतिरीश्वरक “धूर्त समागम” आ अंकिया नाटसँ प्रारम्भ होइत अछि। मुदा बीसम शताब्दीक आरंभिक चरणमे मैथिली
नाटकक, एकांकी आ रंगमंचक दिशामे साहित्यिक अन्यान्य विधादिक
अपेक्षा अत्यंत तीवर्गितसं प्र प्रगति पथपर अग्रसर भेल। मैथिली नाटकक प्राचीन परम्पराक
टिमिटमाइत लौकेँ एहि युगमे नव प्रकाश भेटल। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनक गतिविधि सभ के
प्रभावक कारणॆ बीसम शताब्दीक छठम-सातम-आठम दशकमे मैथिली नाट्य रचना तथा मंचनक
दिशामे सक्रियतासं वृद्धि भेल । विभिन्न संस्था द्वारा नाट्यरचना तथा नाट्यमंचनक आयोजन
सं आधुनिक मैथिली नाटकक विकासमे गति
आयलैक। नवजागरणक एहि पृष्ठभूमिमे अनेकानेक प्रतिभासम्पन्न रंगकर्मी आ नाट्य-निर्देशकक पदार्पण भेल। हुनका लोकनिक तत्परता ओ दक्षता सं आधुनिक मैथिली नाटकके
प्रेरणा आ मार्गदर्शन भेटलैक । नवजागरणक समयमे मैथिली रंगमंचक विकासक दिशामे कलकत्ताक
किछु मैथिली संस्था आ दूरदर्शी रंगकर्मी अग्रणी भेलाह। कहबाक आवश्यकता नहि जे मैथिलीमे
व्यावसायिक रंगमंचक घोर अभाव रहल अछि मुदा तईयो अव्यावसायिक रंगमंचक कलाकारलोकनिक एकरा
प्राणवंत बना क’ रखने छैथ से बड्ड स्तुत्य अछि। याद रखबाक चाही
जे समकालीन मैथिली रंगमंचक विकासमे कलकत्ताक योगदान- अवदान अविस्मरणीय
रहल अछि। मैथिली आंदोलन सं ल’ क’ पोथी प्रकाशन
आ नाट्यमंचन धरि कलकत्ताक भूमिका महत्वपूर्ण रहल अछि। कलकत्ताक पावन धरती पर अभरल अनेक
सुयोग्य रंगकर्मी आ नाट्य निर्देशक लोकनिक सभमे श्रीकान्त मंडलजीक नाम बड्ड प्रमुखता
आ सम्मानसं लेल जाइत अछि। श्रीकान्त मंडलजी मैथिली रंगमंचक शलाका पुरुष, मैथिली रंगदर्शनक पुरोधा रंग-शिल्पी, कुशल नाट्य निर्देशकके रुपमे विख्यात छैथ। वीरेन्द्र मल्लिकक शब्दमे,
“मैथिली रंगमंचक सम्बर्द्धनक प्रति सम्पूर्णत: प्रतिबद्ध, मैथिल सांजक विकासक लेल सतत समर्पित
, आ मैथिली साहित्य एवं पत्रिकाक लेल सर्वदा प्रस्तुत श्रीकान्त मंडलजी
स्वयंमे एकटा जीवन्त व्यक्तित्व छलाह- अदम्य ऊर्जा सं दीप्त,
जिजीविशा सं पूर्ण, हंसमुख, मिलनसार, व्यावहारिक आ सामाजिक लोक।“ कलकत्तासं शुरु भ’ मैथिली रंगमंचक आभा पटनाक धरती पर पसरल आ मैथिली नाटक
अपन नव करौट लेलक।
श्रीकान्त मंडल जीक जन्म
मधुबनी जिलान्तर्गत मिथिलाक विख्यात गाम सरिसब पाही मे 10 जनवरी 1936 के भेलनि। सरिसब पाही एक सं एक मिथिला विभूतिक जनम स्थलीक रुपमे विदित अछि।
मंडल जी दरभंगा राज हाइ स्कूलसं शिक्षा ग्रहण केलाक बाद जीविकोपार्जन हेतु 1954 मे कलकता चलि अयलाह आ एहि भूमिके अपन कर्मभूमि बनेलाह । अतय अयला पर हुनका
भारत सरकारक एकटा अनुसंधान संस्थान, सीएसआईआर-केंद्रीय
काँच एवं सिरामिक अनुसंधान संस्थानमे नौकरी भेटलनि आ मृत्युपर्यंत (7 जनवरी, 1994) काज करैत रहलाह। भारतक
सांस्कृतिक राजधानी कलकत्ता ओहि समयमे मिथिला-मैथिली अंदोलनक
एकटा प्रमुख केन्द्र छलैक। मैथिली आंदोलनक सशक्त माध्यमके रुपमे रंगमंचक विकासक लेल काज प्रारंभ भेल
छल। नाटक देखबाक लेल बेसी सं बेसी लोकक जुटान होइत छल। रंगमंचक माध्यमसं आंदोलन बात
आ उद्देश्य आम जनता (मैथिल)क कान, हृदय आ दिमाग तक पहुंचाबयमे
बड्ड उपयोगी माध्यम मानल जाइत छैक आ कलकत्तासं प्रारंभ मैथिली आंदोलनक माध्यम सेहो
बनल। मैथिली रंगमंच मैथिलीकें अपन प्राप्तव्य सम्मान दियैबाक लेल आनोलन केलक । मैथिलत्वक
भाव जागृत करबाक लेल, सजग मैथिल बनेबाक लेल मैथिली नाटकक सहारा
लेल गेल। शुरु शुरुमे नाटकक मंचन असंगठित, अव्यवस्थित रुपमे होइत
छल। 1953 ई मे “पंडित जी”, “छींक” आ “उगना”क
मंचन भेल छल मुदा नाट्यमंचन सुचारु रुपसं करबाक लेल तत्कालीन रंगप्रेमीसभके
एकटा नाट्य- संस्थाक खगता बुझेलनि आ एहि खगताक पूर्ति करबाक बास्ते
1959
मे
मिथिला कला केन्द्रक नाम सं एकटा नाट्य-संस्था गठित कयल
गेल। श्रीकान्त मंडलजी एहि संस्थाक संस्थापक सचिव बनलाह। एहि संस्थाक मुख्य उद्देश्य छल नाट्याभिनय ओ नाट्यलेखनक
संग संग नाट्यप्रकाशन। मिथिला कला केन्द्र द्वारा मंडलजीक सचिवत्वमे रंगमंचक दिशामे उत्साहवर्द्धक
आ क्रान्तिकारी डेग उठाओल गेलैक। एहि प्रकारे, चाकरी करैत मंडलजी
अपन मिथिला-मैथिली अनुरागकें जीबंत बनौने रहलाह। वस्तुत: जे व्यक्ति चाकरी करैत मिथिला- मैथिलीक सेवामे सदैव
तत्पर रहैया ओकरा मिथिलाक इतिहास कहियो नहि बिसरैत अछि। इएह कारण थिक जे आइ
श्रीकान्त मंडलक उत्कॄष्ट योगदान संग हुनक नाम स्वर्णांकित अछि।
एहि ठाम एहि बातकें स्पष्ट
करब आवश्यक अछि जे श्रीकान्त मंडलजी मिथिला-मैथिलीक समर्पित सेनानी
बाबू साहेब चौधरीक प्रेरणासं मैथिली आदोलनमे भागि ल’ अपन योगदान
दैत रहलाह। ओहि समयमे बाबू साहेब चौधरी ब्राह्मण- कर्णकायस्थेतर
कतेको नवयुवककें जेना बाराहिल मंडल, मॊहम्मद अब्दुल्ला,
विन्देशवरी मंडल आदिकें मिथिला-मैथिलीक आंदोलनमे
शामिल होबय लेल अनुप्रेरित कयने छलाह। तैं हुनका मिथिला –मैथिली
दिस अनुप्रेरित करबाक श्रेय स्वनामधन्य बाबू साहेब चौधरीके जाइत छनि। श्रीकान्त मंडलजी
अपनक प्रतिभा, ऊर्जा, जिजीविषा,
ललक, मेहनत आ सबसं बेसी हुनक मिथिला –मैथिली प्रेमसं ओ अपन पहिचान बनौने रहथि। प्रसिद्ध भाषाविद आ साहित्यकार उदय
नारायण सिंह ‘नचिकेता’क मतानुसार श्रीकान्त
मंडल जी ‘जीवनक विद्यालयमे रंगकर्मक विश्व-विद्यामे निष्णात छलाह। ओ विद्द्व्जन, अग्रणी शिल्पकर्मी,
माजल वाग्विद छलाह। वीरेन्द्र
मल्लिकक शब्दमे कही त’ श्रीकांत मंडल जी ‘एकटा सम्पूर्ण कलाकार छलाह। चाहे ‘अग्निपत्र’क प्रकाशन हो वा कोनो साहित्यिक गोष्ठी, कोनो नाट्य-मंचनक योजना हो वा विद्यापतिपर्वक समायोजन- ओ सभक सहकर्मी
आ सहभोक्ता रहैत छलाह। कोनो व्यक्तिगत काज होउक वा सामाजिक, ताहिमे
अपन अंश ग्रहण करबाक
लेल सदा उद्यत-लालायित।‘
प्रेरक
व्यक्तित्व :
श्रीकान्त मंडलजी एकटा प्रेरक
व्यक्तित्व छलाह। अपन व्यवहार कुशलता आ प्रभावी व्यक्तित्वक कारणे ओ कैकटा व्यक्तिक
लेल प्रेरणाक सबल स्रोत छलैथ। ओ बहुत गोटे कें रंगमंच दिस अयबाक लेल उत्प्रेरित कयने
छलैथ। मैथिली नाट्यलेखनक सशक्त हस्ताक्षर गुणनाथजीकें ओएह नव नव नाटक लिखबाक लेल प्रोत्साहित आ उत्प्रेरित कयलन्हि।
एतबा नहि, लबधप्रतिष्ठित साहित्यकार बहुभाषाविद उदय नारायण सिंह
‘नचिकेता’के सेहो मैथिली नाटक लिखबाक लेल बाध्य
कयलन्हि। वरिष्ठ साहित्यकार वीरेन्द्र मल्लिक सं शोध –कार्य समपन्न करबौलनि। समकालीन मैथिली नाटक
एकटा पैघ नाम महेन्द्र मलंगिया के सेहो नाटक लिखबाक प्रेरणा देलन्हि। जखन कुणालजी कोलकातामे
रहैत छलाह तखन हुनका अपन मार्गदर्शन दए नाट्य-निर्देशनक दिशामे प्रेरित कयलनि।
रंगकर्मी कौशल कुमार दास के सेहो कुशल रंगकर्मी बनेबाक श्रेय श्रीकात मंडलजीके छन्हि।
संक्षेपमे एतबे कहल जा सकैत अछि जे श्रीकान्त मंडलजी महान रंगकर्मी, नाट्य निर्देशकक संग संग एकटा सम्पूर्ण प्रैक्टिकल आ सामाजिक एवं प्रेरक लोक छलाह।
रंगमंचक
आकर्षण ओ मैथिली रंगमंच:
श्रीकान्त मंडलजीक मोनमे
रंगमंचक प्रति अगाध आकर्षण आ लगाव बाल्यकालहिं सं छलैन। मिथिलाक गाम- घरमे दूर्गापूजा, दीवाली, कोजगरा
वा अन्य अवसर पर नाटक मंचनक सांस्कृतिक ओ सामाजिक परिपाटी रहल अछि। गामक नाटक देखि
देखि हुनका मोनमे नाटकक प्रति प्रेम बढति चलि गेल रहनि। कलकत्ता अयला पर एहि प्रेम
आ आकर्षणकें एकटा नव आयाम भेटलनि आ ओ मैथिली रंगमंचसं जुडि गेला। हुनक मिथिला- मैथिली आ रंगमंचक प्रति अनुरागके देखैत कलकत्तामे 1959 मे
गठित पहिल नाट्य संस्था मिथिला कला केन्द्रक ओ सचिव बनाओल गेला। मिथिला कला केन्द्रक
गठनमे शुकदेव ठाकुर, मोहन चौधरी आ लक्ष्मीनारायण मिश्रक
उल्लेखनीय आ अग्रणी भूमिका रहनि। श्रीकान्त मंडलजीक सचिवत्वमे मिथिला कला केन्द्र लगभग सात साल कार्य करैत रहल मुदा
जेनाकि मिथिला मैथिलीक संस्था सभक विघटनक इतिहास अछि, 1966 मे
रंगकर्मी लोकनिक आपसी मत –मतान्तरक कारणॆ मिथिला
कला केन्द्र टूटि गेल। कला केन्द्रके टूटलाक बाद दूटा नव संस्थाक उदय भेल- मैथिली रंगमंच आ मिथियात्रिक। मैथिली रंगमंचक संग रहथि शुकदेव ठाकुर,
श्रीकान्त मंडलआ रामलोचन ठाकुर। श्रीकान्त मंडलजी मैथिली रंगमंचक सचिव
बनाओल गेलाह। दोसर संस्था मिथियात्रिक कें गुननाथ झा आ दयानंद झाक संग ओ सहयोग भॆटलनि
। मैथिली संस्थाक मध्य तत्कालीन उठा-पटक पर वीरेन्द्र मल्लिकजी
स्पष्ट लिखने छैथ- ‘सुनाम अर्जित करबाक क्रममे हुनका मैथिलीक
अन्य संस्थाक रंगकर्मीसभक ईर्ष्या-पात्र बनए पडैत छलन्हि,
संस्थागत संघर्षमे कूदैय पडैत छलन्हि। बेरि बेरि ओ संस्थाकें ठाढ करैत
छलाह, कुचक्री लोक सभ ओकरा तॊडि दैत छल, बेरि बेरि ओ नव रंग-टीप सं ओकरा सजयबा- सम्हरबाक प्रयास करैत छलाह।‘ हुनक ‘फ़िनिक्स’ जका उठबाक शक्ति ओ सामर्थ्य के मल्लिकजी
‘जिब्राल्टरक चट्टान’ कहने छैथ। खैर जे किछु होइ,
ई एतिहासिक बात थिक जे 1960-1976क
समय मैथिली रंगमंचक लेल ‘स्वर्णिम काल” छल।
कुशल
अभिनेता :
कोलकाता मे मैथिली
रंगमंचके नव आयाम देनिहार श्रीकान्त मंडलजी नाट्यनिर्देशक
बनबाक पूर्व एकटा उत्कृष्ट कोटि के कुशल ओ विलक्षण अभिनेता छ्लाह। ओ मैथिली सहित हिन्दी आ बाग्ला नाटकमे सेहो
अभिनयक लोहा मनबौने रहथि। ओ अपन अभिनय यात्रा बांग्ला रंगमंच पर एकता बांग्ला नाटकमे
‘बहादुर”अक अभिनयसं कयने छलाह। तकरा बाद ओ बांग्ला
मोनोड्रामा ‘अपराजिता’मे सेहो अभिनय कयने
छलाह। रामलोचन ठाकुरक मतानुसार अभिनेताक रुपमे मैथिली रंगमंच पर श्रीकांत मंडलजीक प्रथम
पदार्पण 1960 ई मे मंचित एवं प्रवीर मुखोपाध्याय द्वारा निर्देशित नाटक “हाथीक दांत”मे भेल छ्लनि। डा प्रबोध नारायण सिंह द्वारा
लिखित “हाथीक दांत’ के कलकत्तामे
मैथिलीक प्रथम स्तरीय नाट्य-मंचन मानल गेल अछि। तकर बाद ओ अनेकानेक
नाटकमे नायक हो वा सह नायक सभ रुपमे अभिनय करैत रहलाह। हुनक अभिनीत नाटकमे ‘उताहुल धरती पियासल नोर,
चारि पहर, अन्हेर नगरी चौपट राजा, जमीन, चन्द्रगुप्त (चाणक्य नामे
प्रकाशित), चिन्नीक लड्डु, कांचन रंग,
सुखायल डारि नव पल्लव, कुहेस, प्रेम एक कविता, निष्प्रदीप, आगन्तुक,
बेमातर, संतान, पाथेय,
इजोत, मधुयामिनी, नायकक नाम
जीवन, एक छल राजा, नाटकक लेल, बतहा आदि प्रमुख
अछि। । 4 दिसंबर 1966 के
नेताजी सुभाष इंस्टीच्यूट , कलकत्ता मे बांग्लाक
प्रख्यात नाट्यकार एवं नाट्य निर्देशक प्रवीर मुखोपध्याय केर कुशल निर्देशने मंचित
मैथिली नाटक ‘प्रेम : एक कविता’मे श्रीकांत
मंडलजी द्वारा अभिनीत मनोजक भूमिका स्मरणीय अछि। एहि मंच पर हुनका संगे वरिष्ठ साहित्यकार
रामलोचन ठाकुर अश्रु केर भूमिका निभौने छलैथ।
प्रसिद्ध नाट्यकार गुणानाथ झाजी श्रीकांत मंडलजी कें कलाकारक रूपमे लक्ष्मीनारायण
मिश्र (पचही), जनार्दन
झा, फेकू मिश्र, विश्वम्भर ठाकुर,
शुकदेव ठाकुर, रामलोचन ठाकुर, कमल नारायण कर्ण, त्रिलोचन झा आदि महत्वपूर्ण
कलाकारक अग्रणी पांतिमे मानने छैथ। हुनक अभिनय के संबंधमे रामलोचन ठाकुर लिखने छैथ
जे “प्रेम : एक कविता’ मे अभिनीत
भूमिकाके ओ अपन अभिनयसं
स्वाभाविक आ जीबंत बना देने रहथि। तहिना ‘कुहेस’मे अपन अभिनय प्रतिभासं
दर्शकक मोनमे पैघ स्थान बनौने छलैथ। वीरेन्द्र मल्लिकजी ‘बतहा”मे हुनक अभिनयकें ‘माइलस्टोन’ कहने
छैथ।सत्ते! ओ माजल अभिनेता छलाह ।
प्रतिबद्ध
नाट्य-निर्देशक:
श्रीकांत
मंडलजी नाट्यकार एवं नाट्य निर्देशक के रूपमे प्रख्यात
छैथ। हुनक निर्देशन कला पर बांग्ला रंगमंचक प्रतिष्ठित नाम प्रवीर बाबू,
शंभू मित्र आ रुद्रप्रसाद सेनगुप्त एवं हिन्दी रंगमंचक श्यामानंद जलान
जेहन नाट्य-निर्देशकक स्पष्ट प्रभाव छलनि। नाटकमे पाठ करैत करैत
ओ निर्देशनमे सहयोग देबय लागल छलाह । ओ निर्देशनमे कहियो प्रवीर बाबूक सहयोगी त कहियो
गोपाल दासके सहयोगी, त कहियो विष्णु चट्टर्जीक सहयोगी। एहि प्रकारे
ओ अन्तत: फ़ुल-फ़्लेज्ड निर्देशन देब’ लगलाह। उपलब्ध रिकार्डक अनुसार, अखिल भारतीय मिथिला संघक सौजन्यसं श्रीकात मंडलजीक निर्देशनमे
लगभग 5 गोट नाटकक मंचन भेल अछि
-चन्द्रगुप्त(1965) (डी एल
राय लिखित मूल बांग्ला नाटक, मैथिली अनुवाद- बाबू साहेब चौधरी) निष्कलंक (1970), (सहयोग विष्णु चट्टर्जी), पाथेय (1970), चारिपहर (1971),
नायकक नाम जीवन (1972)।
दोसर दिस,
मैथिली रंगमंच के सौजन्यसं श्रीकान्त मंडल
जीक निर्देशनमे करीब 12-13 गोट नाटक मंचन भेल छल- सुखायल
डारि नव पल्लव (1966, 69), प्रेम
एक कविता (1966, 74, 75), निष्प्रदीप
(1966), कुहेस (1967), एक छल राजा (1963, 74), आगंतुक (1974), नाटकक लेल (1974), नशबंदी (1974), बताह (1974), मधुयामिनी (1974), व्यक्तिगत (1976)।
मंडलजी कुर्मी क्षत्रीय छात्र- वृत्ति कोषक सौजन्यसं मंचित इजोत (1970), महकारी (1973) आदिक निर्देशन कयेने रहथि। एहि प्रकारे देख सकैत छी
जे श्रीकांत मंडलजी एकटा कुशल नाट्य-निर्देशकक रुपमे अपना आपके
साबित कयला।
अभिनव
प्रयोगधर्मी :
श्रीकांत
मंडलजी प्रयोगधर्मी निर्देशक छलाह। किछु ने किछु नव करबाक हुनका सदैव लालसा होइन। नाट्याभिनय
होइ वा कि नाट्य-निर्देशन, वा कि मंच-
सज्जा वा कि गीत संगीतक प्रस्तुति सभमे मे ओ किछु नव प्रयोग करबामे लागल
रहैथ। रंग-संचालन ओ प्रबंधनमे वा कि नाटकक रिहर्सलमे ओ अनुशासनकें
विशेष महत्व छलाह। मंचक तकनीक, साज-सज्जा,
गीत-संगीत, आलोक-प्रकाश आ नात्य-प्रस्तुति आदिक बड्ड नीक ज्ञान रहनि।
मैथिली रंगमंच पर नव प्रयोग करबाक लेल ओ सदा स्मरण रहताह। मंडलजीए ‘सुखायल डारि नव पल्लव’मे पहिल बेर मैथिली रंगमंच पर रिवॉल्विंग
मंचक प्रयोग केने रहैथ। पुरुष द्वारा नारी पात्रक अभिनय करबाक प्रचलित प्रवृति आ परम्पराके
समाप्त करबामे हुनक विशेष भूमिका रहनि। ओ बंगला भाषी अभिनेत्रीकें मैथिलीमे प्रशिक्षित
क’ रंगमंच पर उतारला । 1966मे मंचित नाटक ‘सुखायल
डारि नव पल्लव’मे पहिले बेर कास्टिंगक प्रयोग कयलनि। अहिना,
ओ 1974मे नाटक
“नाटकक लेल” मे मंचके ‘लाइट-जोन’मे बांटि क’ एकटा नव प्रयोग
कयलनि। एहि प्रकारे, वो रंगमंचपर नव नव प्रयोग करैत चलि गेलाह।
फ़िल्म
ओ सिनेमा:
श्रीकांत
मंडलजी सिनेमाक प्रेमी छलाह। साधल रंगकर्मक सफ़ल डेग सिनेमा दिस ल’ जाईत छैक। हुनक रंग-प्रेम मैथिली फ़िल्म बनेबाक सपना
के साकार करयमे अग्रसर करैत रहल। श्रीकान्तजी राजकमल चौधरीक प्रसिद्ध कथा 'ललका पाग' पर मैथिली फ़िल्म बनबय चाहैत छलाह। वीरेन्द्र
मल्लिक्क सत्प्रयासें राजकम चौधरीक पत्नी शशिकान्ता जीसं कथा पर फ़िल्म बनेबाक अधिकार
सेहो भेट गेल रहनि। फ़िल्म 'ललका पाग'क निर्माणक घोषणा संगहि इस्टर्न इंडिया मोशन
पिक्चर् एशोसिएशन, कलकत्ता सं भारती प्रोडक्शनक बैनरक अधीन
निर्मित होमय बला एहि फ़िल्मके नामक पंजीकरण भेल छलैक। फ़िल्मक स्क्रीनप्ले,
संवाद, गीत–संगीत सभ
किछु बनि गेल छल। तीन-चारिटा गीत सेहो बनिक’ तैयार भ’
गेल छल। अनील चटर्जीक संगीत निर्देशक आ गीतकारके रुपमे वीरेन्द्र
मल्लिक जी, रबीन्द्र जी आ महेन्द्र मलंगिया रहैथ। सुप्रसिद्ध पार्श्व गायक मन्ना डे आ पार्श्व गायिका
संध्या मुखर्जी फ़िल्मक गीत गौने रहथि। एहि फ़िल्म लेल प्रेमलता मिश्र प्रेम पहिल बेर कॉन्ट्रैक्ट साइन केने छलीह। फ़िल्मक प्रारंभिक
दृश्यांकन इत्यादि सेहो भेल छल। मुदा, दुर्भाग्यवश फ़िल्म बनि
क’ प्रदर्शित नहि भ’ सकल, एकर क्षोभ हुनका रहिये गेलनि।
मंडलजी मायानंद मिश्रक ‘आगि, मोम, पाथर’, प्रभाष कुमार चौधरीक ‘हमरा लग रहब” आ लिली रे’क उपन्यास “ मरीचिका’
पर मेगा फ़िल्म बनयबाक नेयार भास कयने छलाह। ओ नचिकेताजीक एकांकी नाटक
‘इन्द्रमा’ आ सोमदेवक कथा “अंगा” पर एकटा छॊट-छीन टॆलिफ़िल्म
सेहो बनेबाक नियार कयने छलैथ। अतबेटा नहि, मंडलजी मैथिलीक सात गोट कथाक चयन क’
एकटा सीरियल बनयबाक ओरियान्मे लागल छलैथ। एकर अलावे, ओ आरो मैथिली फ़िल्म, सीरियल आदि के निर्मान आ अग्निपुष्पके फ़िल्म निर्देशक बनेबाक सपना संजोगि
क’ रखने रहथि। मुदा, हुनक फ़िल्म-निर्देशनक सपना अपूर्णॆ रहि गेलन्हि।
लेखन कार्य:
श्रीकान्त मंडलजीकें लिखबाक शौख सेहो रहनि। तैं ओ किछु लेखन काज सेहो कयलनि।
साहित्यिक संगोष्ठी आदिमे अनिवार्य उपस्थिति ओ सहभागिताक संग संग हुनक लेख-
आलेखादि विभिन्न पत्र पत्रिकादिमे कहियो कहियो छपैत रहैन। 60-70 के दशकमे मैथिली रंगमंच
आ साहित्य पर हुनक आलेख प्रतिक्रियात्मक होइत छलनि। चेतना समिति द्वारा स्थापित साहित्यकारक
संग-संग हुनको आलेख पाठ करबाक लेल आमंत्रण अबैत छल। डा जयकान्त
मिश्राक मैथिली साहित्यक इतिहासक संदर्भ आ प्रत्युत्तरमे हुनक लिखल एकटा आलेख बड्ड
चोटगर आर व्यंग्यात्मक रहनि। ई आलेख चेतना समिति द्वारा प्रकाशित कोनो पोथी वा स्मारिका
मे छपल छल। 1973 में आरंभित
“अग्निपत्र”क प्रकाशनमे श्रीकान्त मंडलक योगदानकें
के बिसरि सकैत अछि? हुनक
प्रतिभा, मैथिली ओ साहित्यिक प्रेमक कारणे हुनका तत्कालीन साहित्यकारक
सान्निध्य, सम्मान ओ प्रशंसा भेटल करनि।
संगीत प्रेमी:
हुनका गीत- संगीत सं बड्ड प्रेम, रुचि आ लगाव रहनि। ओ गुनगुनाक गीतक धुन बना लैथ। अपन नाटक सभमे एकर प्रयोग
सेहो करैथ। कहियो कहियो मित्र-मंडलीमे अपनो गाबय लागैथ। गीत-संगीतक ज्ञानक बले ओ वीरेन्द्र मल्लिककें ‘मैना के बच्चा
सिलहोरिया रे दूटा जामुन गिरा’ बला गीतमे आम बोलचालक सुबोध भाषाक
प्रयोग करबाक लेल विशेष रुपसं निर्देशित कयने रहथि।
सम्मानः
श्रीकांत मंडलजीकें हुनक प्रतिभाके देखैत
चेतना समिति द्वारा 1993मे सम्मानित कयल गेल छल।
अंतमे एहि आलेखक
आलोकमे इएह कहब जे श्रीकांत मंडलजी शाश्वत प्रतिभाक धनी छलाह। हुनक व्यक्तित्व अगाध,
अथाह, विराट एवं विशाल अछि। हिनक स्वाभाव,
आचरण, परिवर्तित परिस्थितिक संग अपना कें अभियोजित
करबाक साम्र्थ्य प्रबल छल। प्रबल आत्मविश्वासक प्रतिमूर्ति छलाह। वरिष्ठ साहित्यकार
वीरेन्द्र मल्लिक जीक कहब छनि जे श्रीकात मंडलजी अपन सहकर्मीक मध्य ‘लडाकु बाघा’ त नवतुरिया साहित्यकार- कलाकारक लेल ‘मैथिली नाटक आ रंगमंचक एकटा सुविख्यात,
समर्पित रंगकर्मी, आ नाट्य-निर्देशक। आरंभहि सँ कलकत्ताक मैथिली नाट्यांदोलन के सक्रियता, गतिशीलता तथा नव आलोक प्रदान करबामे श्रीकान्त मंडलजीक सहयोग अन्यतम आ
अप्रतिम रहल छन्हि। संक्षिप्तत:, ओ संघर्षरत एकटा जुझारु व्यक्तित्व
छलाह। नाटके हुनक जीनगी छल आ एकरा माध्यमसं किछु नव करबाक लिलसा हुनक सही पहचान छल।
ओ गीत-संगीत, फ़िल्म ऒ सिनेमाक पैघ प्रेमी
छलाह आ मैथिली रंगमंचक माध्यमे मैथिलीक विपुल साहित्यके बडका- छोटका पर्दा पर उतारबाक हुनक प्रबल महत्वाकांक्षा रहनि। डॉ. प्रेमशंकर सिंह मैथिली रंगमंचकें सर्वाधिक लोकप्रिय बनयबाक श्रेय श्रीकांत
मंडलजीकें देने छैथ। हिन्दीक समकालीन शीर्ष लेखक हॄषीकेश सुलभ अपन पोथी “रंगमंच का जनतंत्र”मे मैथिली रंगमंचक विकासमे कुणालजी आ आन मैथिली रंगकर्मीक संग- संग श्रीकान्त मंडलजीक विशेष योगदानके स्पष्ट रुपमे रेखांकित कयने छैथ। ई श्रीकांत
मंडल जेहन लोकक सत्प्रेरणा आ मार्गदर्शनक प्रतिफल थीक जे आई मैथिली रंगमंच
एत्तेक विकसित भ’ सकल अछि।
संदर्भ
:
1.
मैथिली नाटकक विकास- देवकान्त झा एवं दिनेश कुमार
झा
2. मैथिली साहित्यक इतिहास- श्री जयकान्त मिश्रा
3. मैथिली साहित्यक इतिहास- डॉ. शी
दुर्गानाथ झा ‘श्रीष’
4.
रंगमंच का जनतंत्र – हॄषीकेश सुलभ
5. मैथिली साहित्यक आलोचनात्मक इतिहास- दिनेश कुमार झा
6. भारतीय साहित्य की पहचान- डॉ. सियाराम
तिवारी
7. स्मृतिक धोखरल रंग- श्री रामलोचन ठाकुर
8. आंखि मुननेः आंखि खोलने- श्री रामलोचन ठाकुर
साभार:
1. कर्णामृत, जुलाइ-
सितंबर ‘94
2. सांध्य गोष्ठी (रंगमंच विमर्ष केन्द्रित), दिसंबर, 2012
3. पूर्वोत्तर मैथिल समाज (‘कोलकातामे मैथिली’ केन्द्रित), सं. लक्ष्मण झा
‘सागर’
4. परिकल्पना, फ़रवरी, 2012,
भास्करानंद झा भास्कर द्वारा लेल गेल श्रीरामलोचन ठाकुर साक्षात्कार
5. डॉ. वीरेन्द्र मल्लिक - हुनक संग
भेल बातचीत
9. श्री एस एल मंडल - हुनक संग भेल बातचीत
10. अन्यान्य स्रोत
नोटः मिथिला विकास परिषद, कोलकता द्वारा रंगकर्मी
श्रीकान्त मंडलजी आ नाट्यकार गुणाणाथ झाजी पर आयोजित कार्यक्रममे भास्करानन्द झा
भास्कर द्वारा पढल गेल आलेख!