Sunday, August 13, 2023

Shri Gopal: The First Bihari Actor Who acted as a Hero in Maithili, Bhojpuri & Magahi Films

 

 

श्री गोपाल: बिहार का पहला अभिनेता जिसे मैथिली,भोजपुरी और मगही तीनों भाषाओँ में नायक बनने का सौभाग्य मिला

 

गया कालेज का एक लड़का कालेज में नाटकों में अपने अभिनय के कारण बेहद लोकप्रिय था । उस समय पटना में इंटर कालेज का ड्रामा कम्पीटीशन होता था पटना युनिवेर्सिटी में इस कम्पीटीशन में जज बनकर मुंबई से आये थे इब्राहिम अल्काजी  उस लड़के का अभिनय देख उन्होंने कहा – तुम यहाँ क्या कर रहे हो? मुंबई आओउन्होंने कह  दिया पर 18 साल का वो लड़का  हीरो बनने का सपना देखने लगा लेकिन मुंबई कैसे जाये  तो दोस्तो ने टिकट कटाया और सूट सीलावाया और अपने दोस्त को १९६२ में गया से मुंबई भेजा नाम था – श्री गोपाल गया के चाँद चौरा के रहनेवाले श्री गोपाल उन बिहारी अभिनेताओं में से हैं जिन्हें बिहार की तीन भाषाओं में नायक बनने का सौभाग्य मिला मात्र दो साल के संघर्ष के बाद अपने जीवन के  20 वें साल में वो हीरो बन गए 

मुंबई आने पर वो प्रकाश स्टुडियो गए जहाँ उन्हें पता था कि बिहारी मुंशी जी का आफिस है जहानाबाद के मुंशी जी जो उस समय सिनेमा के बड़े  निर्माता थे उनके साथ काम करने के बारे में कहते है श्री गोपाल –

उनका आफिस था प्रकाश स्टुडियो में। मैं उनके यहाँ एकाउंट का काम करने लगा । उनके लिए  उस समय मुंशी जी के लिए फणी मजुमदार , अशोक कुमार और नलिनी जयवंत को लेकर फिल्म डायमंड हार्बर  बना रहे थे । तब तक मैंने किसी से नहीं कहा था कि मुझे अभिनेता बनना है । मैंने फणी दा से कहा कि मै निर्देशन सीखना चाहता हूँ । तो मैंने उन्हें अस्सिस्ट करना शुरू किया । उस समय एक जगह भोजपुरी सम्मेलन मनाने की बात हुई और समारोह में कार्यक्रम के लिए मुझसे संपर्क किया गया । मैंने वीर कुँवर सिंह को लेकर कुछ ड्रामा का सीन बनाया । उस समारोह की काफी पब्लिसिटी हुई थी । मुंबई में जगह - जगह उसके पोस्टर लगे थे । दिल्ली से भी कुछ बड़े मिनिस्टर लोगों को आना था । तब तक भोजपुरी फिल्म बननी शुरू हो चुके थी। उस समारोह को देखने के लिए हिन्दी सिनेमा के निर्देशक पंकज पराशर के पिता निर्माता जे एन पराशर आये थे। मेरा प्रोग्राम देखकर वो मुझसे मिले  और पेपर पर अपना नंबर लिख कर  मुझसे मिलने को कहा । मैं उनसे मिला और उन्होंने कहा कि तुम मेरी भोजपुरी फिल्म के हीरो बनोगे और इस तरह नइहर छुटल जाए का मुहूर्त शाट हुआ. स्टुडियो में सबको पता चल गया कि मै हीरो बनने जा रहा हूँ । और इस तरह बतौर हीरो भोजपुरी फिल्म से मेरी शुरुआत हुई।


मगही फिल्म भैया का निर्माण

नालंदा पिक्चर्स के मालिक मुंशी जी मगही भाषी थे तो उन्होंने अपनी भाषा में फिल्म बनाना चाहा । फणी मजुमदार निर्देशक हुए।मै तब तक भोजपुरी में हीरो बन चूका था और मगही मेरी भाषा थी तो मुझे फिल्म का नायक बनाया गया । विजया चौधरी मेरी हीरोइन थी। लता बोस ने मेरी बहन का किरदार निभाया । बिहार की कई  जगहों पर इसकी शूटिंग हुई। फिल्म खूब चली थी।

 

कन्यादान बनने के योजना

दरअसल हुआ यूँ कि रेणु जी का उपन्यास मैला आँचल हिन्दी साहित्य में लोकप्रिय हो चूका था। मुंशी जी उस पर फिल्म बनान चाह रहे थे। निर्देशक फणी मजुमदार से बात हुई और सहमति बनने पर नवेंदु घोष को पटकथा लिखने को कहा गया और मुझे हीरो के रूप में कास्ट किया गया। मेरा फोटो शूट हुआ । चूँकि उपन्यास का कैनवास बहुत बड़ा था इसलिए राइटिंग में अधिक समय देने की जरुरत थी । इसमें देरी हो रही थी तो रेणु जी ने मुंशी जी से कहा कि आपने भोजपुरी में फिल्म बनाई। मगही में फिल्म बनाई तो क्यों नहीं तब तक मैथिली में एक फिल्म बनायें ,बात जाँच गई मुंशी जी को और खोज शुरू हुई एक अच्छी कहानी की । पता चला कि हरिमोहन झा के दो उपन्यास कन्यादान और द्विरागमन बेहद लोकप्रिय है मिथिला समाज में और इस तरह निर्णय लिया गया कि इन दोनों उपन्यासों पर फिल्म बनाई जाए मैथिली में। नवेंदु घोष जी को पटकथा के लिए और फणी मजुमदार को निर्देशन का जिम्मा दिया गया । मै बिहार से था और नायक उस उपन्यास में हिन्दी बोलता है तो फणी दा ने मुझे हीरो का रोल दिया । भैया जी में जिन्होंने बहन का किरदार निभाया था उन्हें इस फिल्म में मेरे अपोजिट हीरोइन कास्ट किया गया ।

मिथिला में इसकी शूटिंग हुई और  कुछ शूटिंग मुम्बई में हुई । चंद्रनाथ मिश्र अमर जी संवाद सीखाने के लिए आये थे। शूटिंग चालु हुई। मिथिला में एक जगह हम लोग शूट कर हे थे तो एक महिला ने हम लोगों से कहा कि भोजन भ गेले? 'हा हो गया' । तो  उन्होंने कहा कि अगल दिन आप लोग मेरे यहाँ भोजन करेंगे। भाई साहब अगले दिन उन्होने हम सबको मरुआ रोटी खिलाया । सब ने खाया । अगले दिन मुझे और फणी द़ा को छोड़कर सबका पेट खराब!

मैथिली में संवाद बोलना

रामायण तिवारी लडकी के बाप बने थे । वो मैथिली में संवाद नहीं बोल पा रहे थे ।चाहकर भी सही तरह से उच्चारण नहीं कर पा रहे थे तो उन्होंने स्वयं इस किरदार को न करने का फैसला किया और उस तरह अमर जी हीरोइन के पिता का किरदार निभाया। मराठी अभिनेत्री दुलारी जी और हीरोइन की माँ जो बंगाली अभिनेत्री थी इन दोनों का संवाद अदायगी बहुत सही था। भाभी के किरदार में चाँद उस्मानी ने बहुत सही तरीके से मैथिली में संवाद बोला ।

कन्यादान  फिल्म रीलिज

पटना के वीणा सिनेमा में यह फिल्म रीलिज हुई । वीणा सिनेमा हाल के मालिक हीरा बाबू कन्यादान के फाइनेंसर थे। फिल्म को दर्शकों ने काफी सराहा । सी परमानन्द से मेरी काफी दोस्ती थी लेकिन ममता गाबय गीत के लिए उन्हें शुद्ध मैथिली में बोलनेवाला कलाकार चाहिए । इसलिए मैं उस फिल्म में काम नहीं कर पाया ।

मैला आँचल बना डाकदर बाबू  / मुझे हटाकर धर्मेन्द्र को लिया गया

इधर जब मैला आँचल बनाने की बात हुई तो इस बीच क्या हुआ कि मुंशी जी को पता चला कि जहानाबाद में उनकी कुछ जमीनों पर नक्सलियों ने कब्ज़ा कर लिया तो जमीन बचाने के लिए जहानाबाद चले गए । इधर फणी दा की फिल्में  असफल होने लगी ।उन्होंने मुझ से कहा कि अब तुम भोजपुरी फिल्म मत करो। मै तुमको और अपर्णा सेन को लेकर हिन्दी फिल्म बनाऊंगा। लेकिन फणी दा का यह सपना साकर नहीं हो पाया ।कई सालों बाद मुंशी जे औए और फिर से मैला आँचल को लेकर फिल्म बनाने को अग्रसर हुए। समय बदल चूका था । फणी दा थे नहीं तो पटकथा लेखक नवेंदु घोष को निर्देशन की जिम्मेदारी सौंपी गई और मेरे बदले धर्मेदं को हीरो के रूप में कास्ट किया गया । फिल्म की शूटिंग हुई ।लेकिन फिल्म एक फिक्शन न होकर डाक्यूमेंट्री बन गई ।नवेंदु जी ने इतना शूट किया था कि एडिट करना मुश्किल हो गया। इसलिए फिल्म नहीं बनी।

बाद में श्री गोपाल जी ने कई भोजपुरी फिल्मों में हीरो बने । लेकिन हिन्दी सिनेमा से सरोकार नहीं बन पाया । उसका कारण बताते हुए वो कहते हैं कि मै हीरो बन चुका था । छोटा रोल नहीं करना चाह रहा था । परीक्षित साहनी –विधा सिन्हा और मै –रीता भादूडी की जोड़ी बनी थी फिल्म होनहार में । लेकिन इससे पहले कि फिल्म रीलिज हो पाती परीक्षित और विधा जी की कई फिल्में नहीं चलीं जिसका खामियाजा हमारी फिल्म को भुगतना पड़ा । होनहार रीलिज नहीं हो पाई। मै उसे अपनी किस्मत मानता हूँ।

उपकार सिनेमा और बिहार सरकर /सिनेमा को लेकर बिहार सरकार का रवैया

उपकार सफल हो चुकी थी और सारे राज्यों ने उसे टैक्स फ्री कर दिया था। मुझे निर्माताओं ने कहा कि तुम बिहार जाओ और सरकार से बात करो कि उसे टैक्स फ्री किया जाए । मै पटना आया कुछ दिनों तक रुका । मेरे रहने –खाने का सारा इंतजाम किया निर्माताओं ने । दारोगा राय उस समय बिहार के मुख्यमंत्री थे । उनसे बात हुई ।वो मान गए । उनकी पत्नी ने कहा कि मै धरती कहे पुकार के फिल्म देखना चाहती हूँ वो भी अपने घर में। अब क्या किया जाए । तो मैंने उनके घर में ही फिल्म दिखाने के सारी व्यवस्था की । दारोगा राय जी ने कहा कि आप जाए ..आपको चिठ्ठी मिल जाएगी । मै खुश होकर लौटा । कुछ दिनों बाद चिठ्ठी आयी कि बिहार की वित्तीय व्यवस्था ठीक नहीं है इसलिए हम टैक्स फ्री नहीं कर पायेंगे । क्या कहुं मेरी बहुत बेइजती हुई ।सब जगह टैक्स फ्री हो गया था। पता नहीं बिहार को क्या हो गया था ? बिहार का सिनेमा के प्रति हमेशा एप्रोच नकारात्मक ही रहा । इसलिए अपने यहाँ अन्य राज्यों के मुकाबले सिनेमा का हाल अच्चा नहीं है ।

-जितेंद्रनाथ झा जीतू

 

 

 

 

 

 

 

 

 

  

Monday, June 8, 2020

Critically Acclaimed Maithili Film Gaamak Ghar: A New Revolution

                               गामक घर आ अचल मिश्रा

अचल मिश्रा एकटा फिल्म बनेलनि अछि - "गामक घर"। फिल्मके नामस स्पष्ट अछि जे फिल्म गाम- घरके कहानी अछि।गामक घर मात्र गामक घर के कहानी नय अछि । घर के कहानी आ कहानी में नुकाएल काव्य क कहानी अछि।फिल्म निर्देशक के निजी जीवन के Memoir अछिजे फिल्म देखबाक अभ्यास अछि लोक के ओहि स बहुत अलग Celluliod पर फ्रेम दर फ्रेम कविता जेना।

कहानी Capture करैत अइछ करीब तीन दशक के समय ,तीन दशक के समय में गाम आ गामक घर के बदलैत स्वरूप आ गतिविधि ,गामक घर में रहय लोक वला के संबध आ संबंध में परिवर्तन।जेना संगीतक राग या scale के निश्चित स्वर होय छै आ सामान्य रूप में राग गाबैत या बजाबैत काल ओहि स्वर सँ अलग स्वर नय लगाएल जाय छै गामक घर फिल्म मात्र गामक घर के मात्र मधुर स्मृति आ स्वर ल के बनल राग सन फिल्म छै जै में गाम आ गामक घर के सब मधुर स्वर मात्र लेल गेल छै आ तिक्त आ विवाद वला स्वर सब छोड़ि देल गेल छै एहन जरूरी छलै नय त फिल्म के शांत कविता वल भाव विलुप्त भ जाइतै।

गामक घर Capture करैय छै मिथिला के मध्यम वर्गीय परिवार के संयुक्त स nuclear हेबाक कहानी|

आर्थिक सुख लेल गामक घर स पलायन के कहानी।गामक घर के बसल घर सँ छुट्टी के घर आ फेर सामाजिक औपचारिकता मात्र के प्रयोजन स्थान हेबाक कहानी।गामक घर मौन ठाढ अइछ पूरा फिल्म में आ देख रहल अइछ अपन भीतर आ गामक के बदलैत दृश्य आ ओकर कहानी।

पहिल भाग में परिवार जुटल अइछ नव शिशु के जन्मक उत्सव लेल।एक परिवार में अलग -अलग परिवार के जन्म भ गेल अइछ,ओहि अलग परिवार सब के जोड़ै वला डोर दादी उपस्थित छैथ गामक घर में ,गामक घर जुआनी स प्रौढ अवस्था दिस बढि रहल अइछ।गामक घर के लोक अखन गामक घर स दूर त भ रहल छैथ लेकिन बेसी काल दूर नय रहि पाबै छैथ।बसल घर ओकर इतिहास होब जा रहल छै, गामक घर शांत देख रहल अइछ भीतर के गतिविधि आ गितविधि के उपरांतक मौन।

दोसर भाग में गामक घर आब छुट्टी के घर भ गेल अइछ जतऽ लोक दीवाली आ छइठ लेल आबैय छै।दू-चारि दिनक चहल-पहल आ फेर वएह अनंत मौन। एक परिवारक अलग परिवार आब स्पष्ट अलग परिवार बनि गेल अइछ।गामक घर के लोक आब दोसर घर में बसि गेल छैथ लेकिन हुनका अखनो गामक घर के याइद आबि जाय छैन। गामक ,घर फेर वएह मौन शांत..... हवा के संगीत।

तेसर भाग में गामक घर आब बुढ भ गेल अइछ,आब एतऽ साल क दू-चारि दिनक चहल-पहल पुरान बात भ गेल अइछ।गामक घर के लोक शायद आब अपन दोसर घर में पूर्णतया बसि गेल छैथ।नव पीढी के लेल गामक घर दोसर घर छैन।गामक घर आब बस एक संपत्ति छै जकर देखभाल लेल बस जरूरी छै एकटा रखबार।आब गामक घर मात्र गोसाउन लेल आबै के प्रयोजन ।

अंत में गामक देह के जीर्ण भेल देह के तोड़ल जाइत अइछ नव शरीर देबाक लेल शायद गामक घर फेर जीबि पाबै नव देह में।


गामक घर के परिवेश आ भाषा मैथिली अइछ त गामक घर के मैथिली फिल्म कहल जा सकैत अइछ लेकिन गामक घर मात्र मैथिली फिल्म नय अइछ गामक घर के प्रमुख भाषा Scenic Language(दृश्यात्मक भाषा )छै,विश्व के कोनो कोनक व्यक्ति एहि फिल्म स relate क सकैत अइछ।जे एक घर सँ दोसर घर में जाक बसल होय,जे एक परिवार स अलग परिवार बसेने होय।गामक घर पूरा विश्व के फिल्म छै।

गामक घर के शक्ति ओकर Cinematography (दृश्यांकन)आ Background sound (नेपथ्य ध्वनि)छै।एक -एक दृश्य हृदय में ओहि दृश्य स जुड़ल भाव उत्पन्न करत।गामक घर के सब दृश्य प्रमुख दृश्य छै कोनो एक दृश्य को चर्चा पर्याप्त नय तैय्यो किछ दृश्यों उल्लेख क रहल छी,.....

पहिल भाग-

पीपरक गाछ आ नेपथ्य में अकास,पीपरक गाछ आ रस्ता,दालान,दहीक मटकूरी,पाकै लेल पाल पर देल आम स भरल कोठरी,घरक भीतर महिला सब क गतिविधि क परिचयात्मक दृश्य,पहिरबाक -ओढबाक दृश्य,बरखा,आमक गाछी,सूखल धार,गाछी के अंतक दृश्य ,दलान पर सुतल परिवारक लोक,फैमिली फोटोक दृश्य,फ़िल्म देखबाक दृश्य,अकासक मेघ,गामक घर के दूर स लेल फ़ोटो,बरखा में भीजैत तुलसी चौरा,ओसारा क सुन्न पलंग

दोसर भाग- 

कासक बोन आ दूर पीपरक गाछ, पीपरक गाछ के बैकग्राउंड में जाइए रेलगाड़ी,गामक घर क पाछू बनैत दोमहला,जाड़क मद्धिम रौद में ठाढ तुलसी चौरा,स्वेटर बुनैत कनियॉं,दादी आ गामक बुरही, सुंदर वस्त्र पहिरने भौजी आ उजरल रूप में विधवा ननैद ,विधवा ननैदक मलिन मुस्की,दूर-दूर बैसल खाइत दू भैय्यारी,छत के दृश्य,दालान पर ठाढ राजदूत मोटरसाइकिल,छइठ घाट,सॉंझ आ भोरक अर्घ्य ,ओसारा पर बैसल परिवार,कोठरी में बैसल वर आ कनियाँ,गामक घर के उपर जनमैत गाछ,छत पर अलग परिवारक फ़ोटो,दलान पर गप करैत कक्का भतीजा,ओसारा पर राखल खाली कुर्सी,गामक घर के बदरंग देवाल,सुन्न दलान,दलान पर आबैत रिक्शा ,घरक लोक के रिक्शा पर बैसक जेबाक दृश्य ,सुन्न ओसारा पर बैसल गौरैया 

तेसर भाग

धुँध में ठाढ पत्रहीन नग्न गाछ,धुँध में बंसबैऽर,नोनी पड़ल देवाल,ओसारा पर बैसल घरक रखबार,जीर्ण भेल घर आ रंग उड़ला स कारी भेल देवाल ,खिड़की के टूटल पल्ला,प्लास्टर उखरल देवाल आ खिड़की केवार,असगर घूर तापैत रखबार,खपरा उतारबाक दृश्य,टूटैत गामक घर,टूटैत घरक देवाल पर बाबाके फ़ोटो

गामक घर में बैकग्राउंड साउंड फिल्म के संगे फ़िल्म के संगे पूर्ण न्याय केने छै आ एक साउंड detailed रूप से capture कैल गेल छै।

बैकग्राउंड म्युजिक जानिक नय कहि रहल छी,किएक त दृ्श्य के सहज साउंड के साज सबहक भीड़ मारि नय रहल छै।गामक जे कोनो आवाज छै चाहे ओ बहुत सुंदर आ सहज प्रयोग भेल छै चाहे बहैत हवा के आवाज हो,चुन मुन्नी के चुनमुन,बच्चा सबहक शोर,कोइली के कूक,टिटिहरी के आवाज,गयए-बकरी के अवाज,सुन्न के आवाज,बरखा के आवाज,मेघक गड़गड़ाहट,बेंगक आवाज,कौआ के आवाज,तेल कड़कड़ेबाक आवाज,कऽलक हैंडल के आवाज,झींगुर के आवाज,शारदा सिन्हा के छइठ गीत,रामबाबू झा के भगवती गीत।साज में गिटार आ कीबोर्ड पर बहुत कोमल घुन छेड़ल गेल छै जे कि गामक साउंड के और निखारि देने छै ,एकर क्रेडिट अंशुमन शर्मा के छैन।

पहिने कहलहुँ जे गामक घर के प्रमुख भाषा दृश्य छै ,फिल्म में बहुत कम संवाद छै।जे कि बहुत सहज आ सरल या बोल-चालक मैथिली छै।संवाद एतेक सहज छै जे सिनेमा के संवाद नय लागिक गप-शप बुझाय छै।

गामक घर प्रमुखता स नॉन एक्टर के फिल्म छै,एकरा अचल मिश्रा के जादू कहि सकैय छियैन जे एहन लोक सबसऽ एक्टिंग करेने छैथ जिनकर एक्टिंग स दुरक संबंध नय छैन।प्रोफेशनल एक्टर में अभिनव झा गुड्डु के ,सोनिया झा छोटकी काकी के आ दादी के भूमिका जे केने छैथ उल्लेखनीय अइछ(नाम नय बूझल अइछ)।नॉन एक्टर आ एक्टर के डिफरेंस एक्टिंग स निर्णय असंभव अइछ एतेक सहज अभिनय भेल छै।ओहि सब एक्टर सब सँ क्षमा जिनका हम नय चीन्ह पेलहुँ,अभिनव झा सँ भेंट भेल अइछ,सोनिया झा के नाटक यु ट्युब पर देखने छी,दादी के बारे में अचल कहने रहैथ तें बुझल अइछ नय त कहनाय कठिन जे किओ अभिनय रहल छै आ कोनो फिल्म देख रहल छी।

फिल्म के रूप -सज्जा या ड्रेस कोड अभिनय जेना सहज छै या कहि सकैय छियै जे कोनो ड्रेस कोड नय छै।

दृश्यक रंग बहुत सहज रूप सँ समय के संग बदलैत छै।

फिल्म के बारे मे रोचक बात

फिल्म मे देखाओल घर निर्देशक अचल मिश्रा के अपन गामक घर छैन।फिल्म के पात्र सब अचल के अपन घर सदस्य सब पर मॉडल्ड छै,एकदम निजी अनुभव सब के अचल फिल्म रूप मे परसने छैथ ते शायद एतेक बेसी सहज फिल्म बनल छै।फिल्म के शूटिंग लोकेशन माधोपुर ,दरभंगा जिलाक गाम अइछ जे कि निर्देशक के गाम छैन।

गामक घर MAMI Film Festival2019 (Mumbai Acedamy of Moving image)में प्रदर्शित ,चर्चित आ सराहल गेल फिल्म अइछ।गामक घर के देश बहुत रास अन्य फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित भेल जेना कि Kachzha Niv Indie Film Fest Trivandrum 2019

Art House Asia Kolkata 2019.बहुत रास फिल्म विधा के देश-विदेशक नामचीन लोक गामक घर फिल्म के प्रशंसा क चुकल छैथ।


अचल मिश्रा के जन्म डॉक्टर दंपति प्रेम मिश्रा आ उषा झा के पुत्र छैथ आ हुनकर जन्म मुजफ्फरपुर में 23 September1996 क भेल छैन।पढाई -लिखाई मुख्यत: होली क्रॉस दरभंगा आ जेनेसिस पब्लिक स्कूल नोएडा स केने छैथ।सिनेमा सीखै लेल अचल लंदन किंग्स कॉलेज में एक साल अध्ययन केने छैथ।बच्चे सँ पेंटिग ,फ़ोटोग्राफ़ी के सौख राखैवला अंचल किछु शार्ट फ़िल्म सेहो बनेने छैथ।जे कि यू ट्युब आ अन्य प्लेटफ़ॉर्म पर उपलब्ध अइछ ।

ई लेख गामक घर फ़िल्म के समीक्षा नय अइछ हम कोनो समीक्षक नय छै,एक दर्शक आ प्रशंसक रूप में हमरा जे देखायल आ बुझायल से लिखल अइछ ।मैथिली में लिखल गामक घर फ़िल्म पर ई पहिल लेख या चर्चा छी।

दुखक बात -गामक घर मैथिली भाषा आ परिवेश पर बनल फ़िल्म के लगभग सब हिंदी आ अंग्रेज़ी समाचार पत्र आ वेब पत्रिका सब स्थान देलक अइछ आ बात केलक अइछ लेकिन अखन धरि एहि मैथिली फ़िल्म के बात मैथिल समाज के बीच उल्लेखनीय रूप सँ कोनो माध्यम में नय भेल अइछ ।मिथिला आ बिहार क इतिहास में मात्र दोसर या तेसर बेर एहन फ़िल्म बनल जे कि गर्व करैय जोगरक अइछ आ जकर परिवेश मिथिला या बिहारक अइछ (आम्रपाली,तीसरी कसम )तकर बारे में ने कतहु कोनो बात भेल ने ,अपन पाय ,मेहनत आ सा समय खर्च क के मैथिल जीवन के जीवंत रूप में विश्व के सामने आनै वला निर्देशक या अभिनेता के कोनो सम्मान देल गेल । ई बेसी दुखद तखन अइछ जखन कि ई फ़िल्म मैथिली नय बुझै वला दर्शक आ फ़िल्म दिग्गज सब के प्रभावित क रहल छैन।मैथिली के कोनो तथाकथित महान साहित्यकार दू शब्द तक नय लिखलैन फ़िल्म के ऊपर लेकिन हुनका सबके झुट्ठे के मैथिलीक बड़ चिंता।मैथिली के तथाकथित पुरोधा पत्रकार ललित नारायण के जखन हम फ़ोन क के रिक्वेस्ट क के फिल्म निर्देशक के इंटरव्यू लेल कहलिएन त हमरा जवाब देलैथ जे जँ हमरा निर्देशक स्वयं अनुरोध करतैथ तखन हम हुनकर इंटरव्यू करबैन ,उल्लेख करी जे अचल मिश्रा के इंटरव्यू प्रायः सब पैघ मीडिया हाउस क चुकल छैन आ मैथिली पत्रकार के दिल्ली सँ नोएडा तक जा के इंटरव्यू में दिक़्क़त ।

गामक घर कतऽ देख सकै छी।

MUBI स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म पर गामक घर फ़िल्म उपलब्ध अइछ ।फ़्री ट्रायल में नि:शुल्क देख सकैय छी।

अंत में निर्देशक अचल मिश्रा के गामक घर फ़िल्म लेल बहुत बधाई ।अहॉं आगु और कहानी कहि सकी मैथिली परिवेश के से आशा राखब आ मैथिली के अलावा सेहो फ़िल्म विधा में अहॉंके ख़ूब सफलता भेटैय ।

सृजन शेखर ‘अज्ञेय 
०६/०६२०२०

Sunday, February 17, 2019

Legendary Thespian Shrikant Mandal: The Doyen of Maithili Theatre (Rangamanch)


मैथिलीक महान-माजल-निस्सन-निस्स्वार्थ सांगोपांग-समर्पित रंगकर्मी श्रीकान्त मंडल
(जनवरी 1936 - 7 जनवरी 1994)
-भास्करानंद झा भास्कर
साल्ट लेक , कोलकाता

                         युवा श्रीकांत मंडल
          श्रीकांत मंडलजी (1936-1994)क नाम मैथिली रंगमंचक इतिहासमे बहुप्रतिभाशाली-बहुआयामी महान-माजल-निस्सन-निस्स्वार्थ सांगोपांग-समर्पित रंगकर्मी के रुपमे स्वर्णांकित अछि। कलकत्ताक मैथिली नाट्यांदोलन के सक्रियता, गतिशीलता तथा नव आलोक प्रदान करबामे हुनक सहयोग अन्यतम रहल छन्हि। मैथिलीक संस्था-संगठनक गठन,पोथी प्रकाशन, नाट्य-मंचन, अभिनय-निर्देशन, मंच-आलोक  व्यवस्था ओ प्रबंधन सभ क्षेत्रमे हुनक विशिष्ट- उत्कॄष्ट योगदान-अवदान रहल छन्हि। मैथिली रंगमंचक हुनक अतुल्य समर्पण हुनका विशेष बनबैत अछि। इएह कारण छैक जे आइ ओ मैथिली रंगमंचक उन्नयन एवं विकासमे सर्बाधिक योगदान देनिहार रंगकर्मीक नामसूचीमे चर्चित-सुप्रतिष्ठित नाम छैथ। 


            मैथिलीक अपन गौरवपूर्ण इतिहास आओर समृद्ध साहित्य रहल अछि । आधुनिक भारतीय भाषादिमे मैथिली नाट्य-सम्पदाक गौरवशाली परम्परा आ ओकर विशाल पृष्ठभूमि एहि साहित्यक प्रारंभिकावस्थासँ अविच्छिन्न रूपसँ चलैत आबि रहल अछि। मैथिली नाटक आ रंगमंचक इतिहास ज्योतिरीश्वरक धूर्त समागमआ अंकिया नाटसँ प्रारम्भ होइत अछि। मुदा बीसम शताब्दीक आरंभिक चरणमे मैथिली नाटकक, एकांकी आ रंगमंचक दिशामे साहित्यिक अन्यान्य विधादिक अपेक्षा अत्यंत तीवर्गितसं प्र प्रगति पथपर अग्रसर भेल। मैथिली नाटकक प्राचीन परम्पराक टिमिटमाइत लौकेँ एहि युगमे नव प्रकाश भेटल। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनक गतिविधि सभ के प्रभावक कारणॆ बीसम शताब्दीक छठम-सातम-आठम  दशकमे मैथिली नाट्य रचना तथा मंचनक दिशामे सक्रियतासं वृद्धि भेल । विभिन्न संस्था द्वारा नाट्यरचना तथा नाट्यमंचनक आयोजन सं आधुनिक मैथिली नाटकक विकासमे गति आयलैक। नवजागरणक एहि पृष्ठभूमिमे अनेकानेक प्रतिभासम्पन्न रंगकर्मी आ नाट्य-निर्देशकक पदार्पण भेल। हुनका लोकनिक तत्परता ओ दक्षता सं आधुनिक मैथिली नाटकके प्रेरणा आ मार्गदर्शन भेटलैक । नवजागरणक समयमे मैथिली रंगमंचक विकासक दिशामे कलकत्ताक किछु मैथिली संस्था आ दूरदर्शी रंगकर्मी अग्रणी भेलाह। कहबाक आवश्यकता नहि जे मैथिलीमे व्यावसायिक रंगमंचक घोर अभाव रहल अछि मुदा तईयो अव्यावसायिक रंगमंचक कलाकारलोकनिक एकरा प्राणवंत बना करखने छैथ से बड्ड स्तुत्य अछि। याद रखबाक चाही जे समकालीन मैथिली रंगमंचक विकासमे कलकत्ताक योगदान- अवदान अविस्मरणीय रहल अछि। मैथिली आंदोलन सं लपोथी प्रकाशन आ नाट्यमंचन धरि कलकत्ताक भूमिका महत्वपूर्ण रहल अछि। कलकत्ताक पावन धरती पर अभरल अनेक सुयोग्य रंगकर्मी आ नाट्य निर्देशक लोकनिक सभमे श्रीकान्त मंडलजीक नाम बड्ड प्रमुखता आ सम्मानसं लेल जाइत अछि। श्रीकान्त मंडलजी मैथिली रंगमंचक शलाका पुरुष, मैथिली रंगदर्शनक पुरोधा रंग-शिल्पी, कुशल नाट्य निर्देशकके रुपमे विख्यात छैथ। वीरेन्द्र मल्लिकक शब्दमे, “मैथिली रंगमंचक सम्बर्द्धनक प्रति सम्पूर्णत: प्रतिबद्ध, मैथिल सांजक विकासक लेल सतत समर्पित , आ मैथिली साहित्य एवं पत्रिकाक लेल सर्वदा प्रस्तुत श्रीकान्त मंडलजी स्वयंमे एकटा जीवन्त व्यक्तित्व छलाह- अदम्य ऊर्जा सं दीप्त, जिजीविशा सं पूर्ण, हंसमुख, मिलनसार, व्यावहारिक आ सामाजिक लोक।कलकत्तासं शुरु भमैथिली रंगमंचक आभा  पटनाक धरती पर पसरल आ मैथिली नाटक अपन नव करौट लेलक।


            श्रीकान्त मंडल जीक जन्म मधुबनी जिलान्तर्गत मिथिलाक विख्यात गाम सरिसब पाही मे 10 जनवरी 1936 के भेलनि। सरिसब पाही एक सं एक मिथिला विभूतिक जनम स्थलीक रुपमे विदित अछि। मंडल जी दरभंगा राज हाइ स्कूलसं शिक्षा ग्रहण केलाक बाद जीविकोपार्जन हेतु 1954 मे कलकता चलि अयलाह आ एहि भूमिके अपन कर्मभूमि बनेलाह । अतय अयला पर हुनका भारत सरकारक एकटा अनुसंधान संस्थान, सीएसआईआर-केंद्रीय काँच एवं सिरामिक अनुसंधान संस्थानमे नौकरी भेटलनि आ मृत्युपर्यंत (7 जनवरी, 1994) काज करैत रहलाह। भारतक सांस्कृतिक राजधानी कलकत्ता ओहि समयमे मिथिला-मैथिली अंदोलनक एकटा प्रमुख केन्द्र छलैक। मैथिली आंदोलनक सशक्त माध्यमके रुपमे  रंगमंचक विकासक लेल काज प्रारंभ भेल छल। नाटक देखबाक लेल बेसी सं बेसी लोकक जुटान होइत छल। रंगमंचक माध्यमसं आंदोलन बात आ उद्देश्य  आम जनता (मैथिल)क कान, हृदय आ दिमाग तक पहुंचाबयमे बड्ड उपयोगी माध्यम मानल जाइत छैक आ कलकत्तासं प्रारंभ मैथिली आंदोलनक माध्यम सेहो बनल। मैथिली रंगमंच मैथिलीकें अपन प्राप्तव्य सम्मान दियैबाक लेल आनोलन केलक । मैथिलत्वक भाव जागृत करबाक लेल, सजग मैथिल बनेबाक लेल मैथिली नाटकक सहारा लेल गेल। शुरु शुरुमे नाटकक मंचन असंगठित, अव्यवस्थित रुपमे होइत छल। 1953 ई मे “पंडित जी”, “छींक” आ “उगना”क  मंचन भेल छल मुदा नाट्यमंचन सुचारु रुपसं करबाक लेल तत्कालीन रंगप्रेमीसभके एकटा नाट्य- संस्थाक खगता बुझेलनि आ एहि खगताक पूर्ति करबाक बास्ते 1959 मे मिथिला कला केन्द्रक नाम सं एकटा नाट्य-संस्था गठित कयल गेल। श्रीकान्त मंडलजी एहि संस्थाक संस्थापक सचिव बनलाह।  एहि संस्थाक मुख्य उद्देश्य छल नाट्याभिनय ओ नाट्यलेखनक संग संग नाट्यप्रकाशन।  मिथिला कला केन्द्र द्वारा मंडलजीक सचिवत्वमे रंगमंचक दिशामे उत्साहवर्द्धक आ क्रान्तिकारी डेग उठाओल गेलैक।  एहि प्रकारे, चाकरी करैत  मंडलजी अपन मिथिला-मैथिली अनुरागकें जीबंत बनौने रहलाह। वस्तुत: जे व्यक्ति चाकरी करैत मिथिला- मैथिलीक सेवामे सदैव तत्पर रहैया ओकरा मिथिलाक इतिहास कहियो नहि बिसरैत अछि। इएह कारण थिक जे आइ श्रीकान्त मंडलक उत्कॄष्ट योगदान संग हुनक नाम स्वर्णांकित अछि।

            एहि ठाम एहि बातकें स्पष्ट करब आवश्यक अछि जे श्रीकान्त मंडलजी मिथिला-मैथिलीक समर्पित सेनानी बाबू साहेब चौधरीक प्रेरणासं मैथिली आदोलनमे भागि लअपन योगदान दैत रहलाह। ओहि समयमे बाबू साहेब चौधरी ब्राह्मण- कर्णकायस्थेतर कतेको नवयुवककें जेना बाराहिल मंडल, मॊहम्मद अब्दुल्ला, विन्देशवरी मंडल आदिकें मिथिला-मैथिलीक आंदोलनमे शामिल होबय लेल अनुप्रेरित कयने छलाह। तैं हुनका मिथिलामैथिली दिस अनुप्रेरित करबाक श्रेय स्वनामधन्य बाबू साहेब चौधरीके जाइत छनि। श्रीकान्त मंडलजी अपनक प्रतिभा, ऊर्जा, जिजीविषा, ललक, मेहनत आ सबसं बेसी हुनक मिथिलामैथिली प्रेमसं ओ अपन पहिचान बनौने रहथि। प्रसिद्ध भाषाविद आ साहित्यकार उदय नारायण सिंहनचिकेताक मतानुसार श्रीकान्त मंडल जीजीवनक विद्यालयमे रंगकर्मक विश्व-विद्यामे निष्णात छलाह। ओ विद्द्व्जन, अग्रणी शिल्पकर्मी, माजल वाग्विद छलाह।  वीरेन्द्र मल्लिकक शब्दमे कही तश्रीकांत मंडल जीएकटा सम्पूर्ण कलाकार छलाह। चाहेअग्निपत्रक प्रकाशन हो वा कोनो साहित्यिक गोष्ठी, कोनो नाट्य-मंचनक योजना हो वा विद्यापतिपर्वक समायोजन- ओ सभक सहकर्मी आ सहभोक्ता रहैत छलाह। कोनो व्यक्तिगत काज होउक वा सामाजिक, ताहिमे अपन अंश  ग्रहण करबाक लेल सदा उद्यत-लालायित।

प्रेरक व्यक्तित्व :
            श्रीकान्त मंडलजी एकटा प्रेरक व्यक्तित्व छलाह। अपन व्यवहार कुशलता आ प्रभावी व्यक्तित्वक कारणे ओ कैकटा व्यक्तिक लेल प्रेरणाक सबल स्रोत छलैथ। ओ बहुत गोटे कें रंगमंच दिस अयबाक लेल उत्प्रेरित कयने छलैथ। मैथिली नाट्यलेखनक सशक्त हस्ताक्षर गुणनाथजीकें ओएह नव नव नाटक लिखबाक  लेल प्रोत्साहित आ उत्प्रेरित कयलन्हि। एतबा नहि, लबधप्रतिष्ठित साहित्यकार बहुभाषाविद उदय नारायण सिंहनचिकेताके सेहो मैथिली नाटक लिखबाक लेल बाध्य कयलन्हि। वरिष्ठ साहित्यकार वीरेन्द्र मल्लिक सं शोधकार्य  समपन्न करबौलनि। समकालीन मैथिली नाटक एकटा पैघ नाम महेन्द्र मलंगिया के सेहो नाटक लिखबाक प्रेरणा देलन्हि। जखन कुणालजी कोलकातामे रहैत छलाह तखन हुनका  अपन मार्गदर्शन दए नाट्य-निर्देशनक दिशामे प्रेरित कयलनि। रंगकर्मी कौशल कुमार दास के सेहो कुशल रंगकर्मी बनेबाक श्रेय श्रीकात मंडलजीके छन्हि। संक्षेपमे एतबे कहल जा सकैत अछि जे श्रीकान्त मंडलजी महान रंगकर्मी, नाट्य निर्देशकक संग संग एकटा सम्पूर्ण प्रैक्टिकल आ सामाजिक  एवं प्रेरक लोक छलाह।

रंगमंचक आकर्षण ओ मैथिली रंगमंच:

            श्रीकान्त मंडलजीक मोनमे रंगमंचक प्रति अगाध आकर्षण आ लगाव बाल्यकालहिं सं छलैन। मिथिलाक गाम- घरमे दूर्गापूजा, दीवाली, कोजगरा वा अन्य अवसर पर नाटक मंचनक सांस्कृतिक ओ सामाजिक परिपाटी रहल अछि। गामक नाटक देखि देखि हुनका मोनमे नाटकक प्रति प्रेम बढति चलि गेल रहनि। कलकत्ता अयला पर एहि प्रेम आ आकर्षणकें एकटा नव आयाम  भेटलनि आ ओ मैथिली रंगमंचसं जुडि गेला। हुनक मिथिला- मैथिली आ रंगमंचक प्रति अनुरागके देखैत कलकत्तामे 1959 मे गठित पहिल नाट्य संस्था मिथिला कला केन्द्रक ओ सचिव बनाओल गेला। मिथिला कला केन्द्रक गठनमे शुकदेव ठाकुर, मोहन चौधरी आ लक्ष्मीनारायण मिश्रक उल्लेखनीय आ अग्रणी भूमिका रहनि। श्रीकान्त मंडलजीक सचिवत्वमे  मिथिला कला केन्द्र  लगभग सात साल कार्य करैत रहल मुदा जेनाकि मिथिला मैथिलीक संस्था सभक विघटनक इतिहास अछि, 1966 मे रंगकर्मी लोकनिक आपसी मतमतान्तरक कारणॆ मिथिला कला केन्द्र टूटि गेल। कला केन्द्रके टूटलाक बाद दूटा नव संस्थाक उदय भेल- मैथिली रंगमंच आ मिथियात्रिक। मैथिली रंगमंचक संग रहथि शुकदेव ठाकुर, श्रीकान्त मंडलआ रामलोचन ठाकुर। श्रीकान्त मंडलजी मैथिली रंगमंचक सचिव बनाओल गेलाह। दोसर संस्था मिथियात्रिक कें गुननाथ झा आ दयानंद झाक संग ओ सहयोग भॆटलनि । मैथिली संस्थाक मध्य तत्कालीन उठा-पटक पर वीरेन्द्र मल्लिकजी स्पष्ट लिखने छैथ- ‘सुनाम अर्जित करबाक क्रममे हुनका मैथिलीक अन्य संस्थाक रंगकर्मीसभक ईर्ष्या-पात्र बनए पडैत छलन्हि, संस्थागत संघर्षमे कूदैय पडैत छलन्हि। बेरि बेरि ओ संस्थाकें ठाढ करैत छलाह, कुचक्री लोक सभ ओकरा तॊडि दैत छल, बेरि बेरि ओ नव रंग-टीप सं ओकरा सजयबा- सम्हरबाक प्रयास करैत छलाह।हुनक फ़िनिक्सजका उठबाक शक्ति ओ सामर्थ्य के मल्लिकजीजिब्राल्टरक चट्टानकहने छैथ। खैर जे किछु होइ, ई एतिहासिक बात थिक जे 1960-1976क समय मैथिली रंगमंचक लेलस्वर्णिम कालछल।

कुशल अभिनेता :

             कोलकाता मे मैथिली रंगमंचके नव आयाम देनिहार श्रीकान्त मंडलजी नाट्यनिर्देशक बनबाक पूर्व एकटा उत्कृष्ट कोटि के कुशल ओ विलक्षण अभिनेता छ्लाह। ओ मैथिली  सहित हिन्दी आ बाग्ला नाटकमे सेहो अभिनयक लोहा मनबौने रहथि। ओ अपन अभिनय यात्रा बांग्ला रंगमंच पर एकता बांग्ला नाटकमेबहादुरअक अभिनयसं कयने छलाह। तकरा बाद ओ बांग्ला मोनोड्रामाअपराजितामे सेहो अभिनय कयने छलाह। रामलोचन ठाकुरक मतानुसार अभिनेताक रुपमे मैथिली रंगमंच पर श्रीकांत मंडलजीक प्रथम पदार्पण 1960 ई मे मंचित एवं प्रवीर मुखोपाध्याय द्वारा निर्देशित नाटकहाथीक दांतमे भेल छ्लनि। डा प्रबोध नारायण सिंह द्वारा लिखितहाथीक दांतके कलकत्तामे मैथिलीक प्रथम स्तरीय नाट्य-मंचन मानल गेल अछि। तकर बाद ओ अनेकानेक नाटकमे नायक हो वा सह नायक सभ रुपमे अभिनय करैत रहलाह।  हुनक अभिनीत नाटकमे  उताहुल धरती पियासल नोर, चारि पहर, अन्हेर नगरी चौपट राजा, जमीन, चन्द्रगुप्त (चाणक्य नामे प्रकाशित), चिन्नीक लड्डु, कांचन रंग, सुखायल डारि नव पल्लव, कुहेस, प्रेम एक कविता, निष्प्रदीप, आगन्तुक, बेमातर, संतान, पाथेय, इजोत, मधुयामिनी, नायकक नाम जीवन, एक छल राजा, नाटकक लेल, बतहा  आदि प्रमुख अछि। । 4 दिसंबर 1966 के नेताजी सुभाष इंस्टीच्यूट , कलकत्ता मे बांग्लाक प्रख्यात नाट्यकार एवं नाट्य निर्देशक प्रवीर मुखोपध्याय केर कुशल निर्देशने मंचित मैथिली नाटकप्रेम : एक कवितामे श्रीकांत मंडलजी द्वारा अभिनीत मनोजक भूमिका स्मरणीय अछि। एहि मंच पर हुनका संगे वरिष्ठ साहित्यकार रामलोचन ठाकुर अश्रु केर भूमिका निभौने छलैथ। प्रसिद्ध नाट्यकार गुणानाथ झाजी श्रीकांत मंडलजी कें कलाकारक रूपमे लक्ष्मीनारायण मिश्र (पचही), जनार्दन झा, फेकू मिश्र, विश्वम्भर ठाकुर, शुकदेव ठाकुर, रामलोचन ठाकुर, कमल नारायण कर्ण, त्रिलोचन झा आदि महत्वपूर्ण कलाकारक अग्रणी पांतिमे मानने छैथ। हुनक अभिनय के संबंधमे रामलोचन ठाकुर लिखने छैथ जेप्रेम : एक कवितामे अभिनीत भूमिकाके  ओ अपन अभिनयसं स्वाभाविक आ जीबंत बना देने रहथि।  तहिनाकुहेसमे अपन अभिनय प्रतिभासं दर्शकक मोनमे पैघ स्थान बनौने छलैथ। वीरेन्द्र मल्लिकजीबतहामे हुनक अभिनयकेंमाइलस्टोनकहने छैथ।सत्ते! ओ माजल अभिनेता छलाह ।


प्रतिबद्ध नाट्य-निर्देशक:

            श्रीकांत मंडलजी नाट्यकार एवं नाट्य निर्देशक के रूपमे प्रख्यात छैथ। हुनक निर्देशन कला पर बांग्ला रंगमंचक प्रतिष्ठित नाम प्रवीर बाबू, शंभू मित्र आ रुद्रप्रसाद सेनगुप्त एवं हिन्दी रंगमंचक श्यामानंद जलान जेहन नाट्य-निर्देशकक स्पष्ट प्रभाव छलनि। नाटकमे पाठ करैत करैत ओ निर्देशनमे सहयोग देबय लागल छलाह । ओ निर्देशनमे कहियो प्रवीर बाबूक सहयोगी त कहियो गोपाल दासके सहयोगी, त कहियो  विष्णु चट्टर्जीक सहयोगी। एहि प्रकारे ओ अन्तत:  फ़ुल-फ़्लेज्ड निर्देशन देबलगलाह।  उपलब्ध रिकार्डक अनुसार, अखिल भारतीय मिथिला संघक सौजन्यसं श्रीकात मंडलजीक निर्देशनमे लगभग 5 गोट नाटकक मंचन भेल अछि -चन्द्रगुप्त(1965) (डी एल राय लिखित मूल बांग्ला नाटक, मैथिली अनुवाद- बाबू साहेब चौधरी) निष्कलंक (1970), (सहयोग विष्णु चट्टर्जी), पाथेय (1970), चारिपहर (1971), नायकक नाम जीवन (1972)। दोसर दिस, मैथिली रंगमंच के सौजन्यसं श्रीकान्त मंडल जीक निर्देशनमे करीब 12-13 गोट नाटक मंचन भेल छल- सुखायल डारि नव पल्लव (1966, 69), प्रेम एक कविता (1966, 74, 75), निष्प्रदीप (1966), कुहेस (1967), एक छल राजा (1963, 74), आगंतुक (1974), नाटकक लेल (1974), नशबंदी (1974), बताह (1974), मधुयामिनी (1974), व्यक्तिगत (1976) मंडलजी कुर्मी क्षत्रीय छात्र- वृत्ति कोषक सौजन्यसं मंचित इजोत (1970), महकारी (1973) आदिक निर्देशन कयेने रहथि। एहि प्रकारे देख सकैत छी जे श्रीकांत मंडलजी एकटा कुशल नाट्य-निर्देशकक रुपमे अपना आपके साबित कयला।

अभिनव प्रयोगधर्मी :

            श्रीकांत मंडलजी प्रयोगधर्मी निर्देशक छलाह। किछु ने किछु नव करबाक हुनका सदैव लालसा होइन। नाट्याभिनय होइ वा कि नाट्य-निर्देशन, वा कि मंच- सज्जा वा कि गीत संगीतक प्रस्तुति सभमे मे ओ किछु नव प्रयोग करबामे लागल रहैथ। रंग-संचालन ओ प्रबंधनमे वा कि नाटकक रिहर्सलमे ओ अनुशासनकें विशेष महत्व छलाह। मंचक तकनीक, साज-सज्जा, गीत-संगीत, आलोक-प्रकाश आ नात्य-प्रस्तुति आदिक बड्ड नीक ज्ञान रहनि। मैथिली रंगमंच पर नव प्रयोग करबाक लेल ओ सदा स्मरण रहताह। मंडलजीएसुखायल डारि नव पल्लवमे पहिल बेर मैथिली रंगमंच पर रिवॉल्विंग मंचक प्रयोग केने रहैथ। पुरुष द्वारा नारी पात्रक अभिनय करबाक प्रचलित प्रवृति आ परम्पराके समाप्त करबामे हुनक विशेष भूमिका रहनि। ओ बंगला भाषी अभिनेत्रीकें मैथिलीमे प्रशिक्षित करंगमंच पर उतारला । 1966मे मंचित नाटकसुखायल डारि नव पल्लवमे पहिले बेर कास्टिंगक प्रयोग कयलनि। अहिना, 1974मे  नाटकनाटकक लेलमे मंचकेलाइट-जोनमे बांटि कएकटा नव प्रयोग कयलनि। एहि प्रकारे, वो रंगमंचपर नव नव प्रयोग करैत चलि गेलाह।

फ़िल्म ओ सिनेमा:

            श्रीकांत मंडलजी सिनेमाक प्रेमी छलाह। साधल रंगकर्मक सफ़ल डेग सिनेमा दिस लजाईत छैक। हुनक रंग-प्रेम मैथिली फ़िल्म बनेबाक सपना के साकार करयमे अग्रसर करैत रहल। श्रीकान्तजी राजकमल चौधरीक प्रसिद्ध कथा 'ललका पाग' पर मैथिली फ़िल्म बनबय चाहैत छलाह। वीरेन्द्र मल्लिक्क सत्प्रयासें राजकम चौधरीक पत्नी शशिकान्ता जीसं कथा पर फ़िल्म बनेबाक अधिकार सेहो भेट गेल रहनि। फ़िल्म 'ललका पाग'क निर्माणक घोषणा संगहि इस्टर्न इंडिया मोशन पिक्चर् एशोसिएशन, कलकत्ता सं भारती प्रोडक्शनक बैनरक अधीन निर्मित होमय बला एहि फ़िल्मके नामक पंजीकरण भेल छलैक। फ़िल्मक स्क्रीनप्ले, संवाद, गीतसंगीत सभ किछु बनि गेल छल। तीन-चारिटा गीत सेहो बनिकतैयार भगेल छल। अनील चटर्जीक संगीत निर्देशक आ गीतकारके रुपमे वीरेन्द्र मल्लिक जी, रबीन्द्र जी आ महेन्द्र मलंगिया रहैथ।  सुप्रसिद्ध पार्श्व गायक मन्ना डे आ पार्श्व गायिका संध्या मुखर्जी फ़िल्मक गीत गौने रहथि। एहि फ़िल्म लेल प्रेमलता मिश्र प्रेम पहिल बेर कॉन्ट्रैक्ट साइन केने छलीह। फ़िल्मक प्रारंभिक दृश्यांकन इत्यादि सेहो भेल छल। मुदा, दुर्भाग्यवश फ़िल्म बनि कप्रदर्शित नहि भसकल, एकर क्षोभ हुनका रहिये गेलनि।

             मंडलजी  मायानंद मिश्रकआगि, मोम, पाथर’, प्रभाष कुमार चौधरीकहमरा लग रहबआ लिली रेक उपन्यासमरीचिकापर मेगा फ़िल्म बनयबाक नेयार भास कयने छलाह। ओ नचिकेताजीक एकांकी नाटकइन्द्रमाआ सोमदेवक कथाअंगापर एकटा छॊट-छीन टॆलिफ़िल्म सेहो बनेबाक नियार कयने छलैथ।  अतबेटा नहि, मंडलजी मैथिलीक सात गोट कथाक चयन कएकटा सीरियल बनयबाक ओरियान्मे लागल छलैथ। एकर अलावे,  ओ आरो मैथिली फ़िल्म, सीरियल आदि के निर्मान आ अग्निपुष्पके फ़िल्म निर्देशक बनेबाक सपना संजोगि करखने रहथि। मुदा, हुनक फ़िल्म-निर्देशनक सपना अपूर्णॆ रहि गेलन्हि।

लेखन कार्य:

                        श्रीकान्त मंडलजीकें लिखबाक शौख सेहो रहनि। तैं ओ किछु लेखन काज सेहो कयलनि। साहित्यिक संगोष्ठी आदिमे अनिवार्य उपस्थिति ओ सहभागिताक संग संग हुनक लेख- आलेखादि विभिन्न पत्र पत्रिकादिमे कहियो कहियो छपैत रहैन 60-70 के दशकमे मैथिली रंगमंच आ साहित्य पर हुनक आलेख प्रतिक्रियात्मक होइत छलनि। चेतना समिति द्वारा स्थापित साहित्यकारक संग-संग हुनको आलेख पाठ करबाक लेल आमंत्रण अबैत छल। डा जयकान्त मिश्राक मैथिली साहित्यक इतिहासक संदर्भ आ प्रत्युत्तरमे हुनक लिखल एकटा आलेख बड्ड चोटगर आर व्यंग्यात्मक रहनि। ई आलेख चेतना समिति द्वारा प्रकाशित कोनो पोथी वा स्मारिका मे छपल छल। 1973 में आरंभितअग्निपत्रक प्रकाशनमे श्रीकान्त मंडलक योगदानकें के बिसरि सकैत अछि?  हुनक प्रतिभा, मैथिली ओ साहित्यिक प्रेमक कारणे हुनका तत्कालीन साहित्यकारक सान्निध्य, सम्मान ओ प्रशंसा भेटल  करनि।

संगीत प्रेमी:

                        हुनका गीत- संगीत सं बड्ड प्रेम, रुचि आ लगाव रहनि। ओ गुनगुनाक गीतक धुन बना लैथ। अपन नाटक सभमे एकर प्रयोग सेहो करैथ। कहियो कहियो मित्र-मंडलीमे अपनो गाबय लागैथ। गीत-संगीतक ज्ञानक बले ओ वीरेन्द्र मल्लिककेंमैना के बच्चा सिलहोरिया रे दूटा जामुन गिराबला गीतमे आम बोलचालक सुबोध भाषाक प्रयोग करबाक लेल विशेष रुपसं निर्देशित कयने रहथि।

सम्मानः
            श्रीकांत मंडलजीकें हुनक प्रतिभाके देखैत चेतना समिति द्वारा 1993मे सम्मानित कयल गेल छल।

                        अंतमे एहि आलेखक आलोकमे इएह कहब जे श्रीकांत मंडलजी शाश्वत प्रतिभाक धनी छलाह। हुनक व्यक्तित्व अगाध, अथाह, विराट एवं विशाल अछि। हिनक स्वाभाव, आचरण, परिवर्तित परिस्थितिक संग अपना कें अभियोजित करबाक साम्र्थ्य प्रबल छल। प्रबल आत्मविश्वासक प्रतिमूर्ति छलाह। वरिष्ठ साहित्यकार वीरेन्द्र मल्लिक जीक कहब छनि जे श्रीकात मंडलजी अपन सहकर्मीक मध्यलडाकु बाघात नवतुरिया साहित्यकार- कलाकारक लेलमैथिली नाटक आ रंगमंचक एकटा सुविख्यात, समर्पित रंगकर्मी, आ नाट्य-निर्देशक। आरंभहि सँ कलकत्ताक मैथिली नाट्यांदोलन के सक्रियता, गतिशीलता तथा नव आलोक प्रदान करबामे श्रीकान्त मंडलजीक सहयोग अन्यतम आ अप्रतिम रहल छन्हि।  संक्षिप्तत:,  ओ संघर्षरत एकटा जुझारु व्यक्तित्व छलाह। नाटके हुनक जीनगी छल आ एकरा माध्यमसं किछु नव करबाक लिलसा हुनक सही पहचान छल। ओ गीत-संगीत, फ़िल्म ऒ सिनेमाक पैघ प्रेमी छलाह आ मैथिली रंगमंचक माध्यमे मैथिलीक विपुल साहित्यके बडका- छोटका पर्दा पर उतारबाक हुनक प्रबल महत्वाकांक्षा रहनि। डॉ. प्रेमशंकर सिंह मैथिली रंगमंचकें सर्वाधिक लोकप्रिय बनयबाक श्रेय श्रीकांत मंडलजीकें देने छैथ। हिन्दीक समकालीन शीर्ष लेखक हॄषीकेश सुलभ  अपन पोथीरंगमंच का जनतंत्रमे मैथिली रंगमंचक विकासमे कुणालजी आ आन मैथिली रंगकर्मीक संग- संग श्रीकान्त मंडलजीक विशेष योगदानके स्पष्ट रुपमे रेखांकित कयने छैथ। ई श्रीकांत मंडल जेहन लोकक  सत्प्रेरणा आ  मार्गदर्शनक प्रतिफल थीक जे आई मैथिली रंगमंच एत्तेक विकसित भ सकल अछि।


संदर्भ :
1. मैथिली नाटकक विकास- देवकान्त झा एवं दिनेश कुमार झा
2. मैथिली साहित्यक इतिहास- श्री जयकान्त मिश्रा
3. मैथिली साहित्यक इतिहास- डॉ. शी दुर्गानाथ झाश्रीष
4. रंगमंच का जनतंत्रहॄषीकेश सुलभ
5. मैथिली साहित्यक आलोचनात्मक इतिहास- दिनेश कुमार झा
6. भारतीय साहित्य की पहचान- डॉ. सियाराम तिवारी
7. स्मृतिक धोखरल रंग- श्री रामलोचन ठाकुर
8. आंखि मुननेः आंखि खोलने- श्री रामलोचन ठाकुर

साभार:
1.  कर्णामृत, जुलाइ- सितंबर94
2. सांध्य गोष्ठी (रंगमंच विमर्ष केन्द्रित), दिसंबर, 2012
3. पूर्वोत्तर मैथिल समाज (‘कोलकातामे मैथिलीकेन्द्रित), सं. लक्ष्मण झासागर
4. परिकल्पना, फ़रवरी, 2012, भास्करानंद झा भास्कर द्वारा लेल गेल श्रीरामलोचन ठाकुर साक्षात्कार
5. डॉ. वीरेन्द्र मल्लिक - हुनक संग भेल बातचीत
9. श्री एस एल मंडल - हुनक संग भेल बातचीत
10. अन्यान्य स्रोत

नोटः मिथिला विकास परिषद, कोलकता द्वारा रंगकर्मी श्रीकान्त मंडलजी आ नाट्यकार गुणाणाथ झाजी पर आयोजित कार्यक्रममे भास्करानन्द झा भास्कर द्वारा पढल गेल आलेख!