Sunday, August 13, 2023

Shri Gopal: The First Bihari Actor Who acted as a Hero in Maithili, Bhojpuri & Magahi Films

 

 

श्री गोपाल: बिहार का पहला अभिनेता जिसे मैथिली,भोजपुरी और मगही तीनों भाषाओँ में नायक बनने का सौभाग्य मिला

 

गया कालेज का एक लड़का कालेज में नाटकों में अपने अभिनय के कारण बेहद लोकप्रिय था । उस समय पटना में इंटर कालेज का ड्रामा कम्पीटीशन होता था पटना युनिवेर्सिटी में इस कम्पीटीशन में जज बनकर मुंबई से आये थे इब्राहिम अल्काजी  उस लड़के का अभिनय देख उन्होंने कहा – तुम यहाँ क्या कर रहे हो? मुंबई आओउन्होंने कह  दिया पर 18 साल का वो लड़का  हीरो बनने का सपना देखने लगा लेकिन मुंबई कैसे जाये  तो दोस्तो ने टिकट कटाया और सूट सीलावाया और अपने दोस्त को १९६२ में गया से मुंबई भेजा नाम था – श्री गोपाल गया के चाँद चौरा के रहनेवाले श्री गोपाल उन बिहारी अभिनेताओं में से हैं जिन्हें बिहार की तीन भाषाओं में नायक बनने का सौभाग्य मिला मात्र दो साल के संघर्ष के बाद अपने जीवन के  20 वें साल में वो हीरो बन गए 

मुंबई आने पर वो प्रकाश स्टुडियो गए जहाँ उन्हें पता था कि बिहारी मुंशी जी का आफिस है जहानाबाद के मुंशी जी जो उस समय सिनेमा के बड़े  निर्माता थे उनके साथ काम करने के बारे में कहते है श्री गोपाल –

उनका आफिस था प्रकाश स्टुडियो में। मैं उनके यहाँ एकाउंट का काम करने लगा । उनके लिए  उस समय मुंशी जी के लिए फणी मजुमदार , अशोक कुमार और नलिनी जयवंत को लेकर फिल्म डायमंड हार्बर  बना रहे थे । तब तक मैंने किसी से नहीं कहा था कि मुझे अभिनेता बनना है । मैंने फणी दा से कहा कि मै निर्देशन सीखना चाहता हूँ । तो मैंने उन्हें अस्सिस्ट करना शुरू किया । उस समय एक जगह भोजपुरी सम्मेलन मनाने की बात हुई और समारोह में कार्यक्रम के लिए मुझसे संपर्क किया गया । मैंने वीर कुँवर सिंह को लेकर कुछ ड्रामा का सीन बनाया । उस समारोह की काफी पब्लिसिटी हुई थी । मुंबई में जगह - जगह उसके पोस्टर लगे थे । दिल्ली से भी कुछ बड़े मिनिस्टर लोगों को आना था । तब तक भोजपुरी फिल्म बननी शुरू हो चुके थी। उस समारोह को देखने के लिए हिन्दी सिनेमा के निर्देशक पंकज पराशर के पिता निर्माता जे एन पराशर आये थे। मेरा प्रोग्राम देखकर वो मुझसे मिले  और पेपर पर अपना नंबर लिख कर  मुझसे मिलने को कहा । मैं उनसे मिला और उन्होंने कहा कि तुम मेरी भोजपुरी फिल्म के हीरो बनोगे और इस तरह नइहर छुटल जाए का मुहूर्त शाट हुआ. स्टुडियो में सबको पता चल गया कि मै हीरो बनने जा रहा हूँ । और इस तरह बतौर हीरो भोजपुरी फिल्म से मेरी शुरुआत हुई।


मगही फिल्म भैया का निर्माण

नालंदा पिक्चर्स के मालिक मुंशी जी मगही भाषी थे तो उन्होंने अपनी भाषा में फिल्म बनाना चाहा । फणी मजुमदार निर्देशक हुए।मै तब तक भोजपुरी में हीरो बन चूका था और मगही मेरी भाषा थी तो मुझे फिल्म का नायक बनाया गया । विजया चौधरी मेरी हीरोइन थी। लता बोस ने मेरी बहन का किरदार निभाया । बिहार की कई  जगहों पर इसकी शूटिंग हुई। फिल्म खूब चली थी।

 

कन्यादान बनने के योजना

दरअसल हुआ यूँ कि रेणु जी का उपन्यास मैला आँचल हिन्दी साहित्य में लोकप्रिय हो चूका था। मुंशी जी उस पर फिल्म बनान चाह रहे थे। निर्देशक फणी मजुमदार से बात हुई और सहमति बनने पर नवेंदु घोष को पटकथा लिखने को कहा गया और मुझे हीरो के रूप में कास्ट किया गया। मेरा फोटो शूट हुआ । चूँकि उपन्यास का कैनवास बहुत बड़ा था इसलिए राइटिंग में अधिक समय देने की जरुरत थी । इसमें देरी हो रही थी तो रेणु जी ने मुंशी जी से कहा कि आपने भोजपुरी में फिल्म बनाई। मगही में फिल्म बनाई तो क्यों नहीं तब तक मैथिली में एक फिल्म बनायें ,बात जाँच गई मुंशी जी को और खोज शुरू हुई एक अच्छी कहानी की । पता चला कि हरिमोहन झा के दो उपन्यास कन्यादान और द्विरागमन बेहद लोकप्रिय है मिथिला समाज में और इस तरह निर्णय लिया गया कि इन दोनों उपन्यासों पर फिल्म बनाई जाए मैथिली में। नवेंदु घोष जी को पटकथा के लिए और फणी मजुमदार को निर्देशन का जिम्मा दिया गया । मै बिहार से था और नायक उस उपन्यास में हिन्दी बोलता है तो फणी दा ने मुझे हीरो का रोल दिया । भैया जी में जिन्होंने बहन का किरदार निभाया था उन्हें इस फिल्म में मेरे अपोजिट हीरोइन कास्ट किया गया ।

मिथिला में इसकी शूटिंग हुई और  कुछ शूटिंग मुम्बई में हुई । चंद्रनाथ मिश्र अमर जी संवाद सीखाने के लिए आये थे। शूटिंग चालु हुई। मिथिला में एक जगह हम लोग शूट कर हे थे तो एक महिला ने हम लोगों से कहा कि भोजन भ गेले? 'हा हो गया' । तो  उन्होंने कहा कि अगल दिन आप लोग मेरे यहाँ भोजन करेंगे। भाई साहब अगले दिन उन्होने हम सबको मरुआ रोटी खिलाया । सब ने खाया । अगले दिन मुझे और फणी द़ा को छोड़कर सबका पेट खराब!

मैथिली में संवाद बोलना

रामायण तिवारी लडकी के बाप बने थे । वो मैथिली में संवाद नहीं बोल पा रहे थे ।चाहकर भी सही तरह से उच्चारण नहीं कर पा रहे थे तो उन्होंने स्वयं इस किरदार को न करने का फैसला किया और उस तरह अमर जी हीरोइन के पिता का किरदार निभाया। मराठी अभिनेत्री दुलारी जी और हीरोइन की माँ जो बंगाली अभिनेत्री थी इन दोनों का संवाद अदायगी बहुत सही था। भाभी के किरदार में चाँद उस्मानी ने बहुत सही तरीके से मैथिली में संवाद बोला ।

कन्यादान  फिल्म रीलिज

पटना के वीणा सिनेमा में यह फिल्म रीलिज हुई । वीणा सिनेमा हाल के मालिक हीरा बाबू कन्यादान के फाइनेंसर थे। फिल्म को दर्शकों ने काफी सराहा । सी परमानन्द से मेरी काफी दोस्ती थी लेकिन ममता गाबय गीत के लिए उन्हें शुद्ध मैथिली में बोलनेवाला कलाकार चाहिए । इसलिए मैं उस फिल्म में काम नहीं कर पाया ।

मैला आँचल बना डाकदर बाबू  / मुझे हटाकर धर्मेन्द्र को लिया गया

इधर जब मैला आँचल बनाने की बात हुई तो इस बीच क्या हुआ कि मुंशी जी को पता चला कि जहानाबाद में उनकी कुछ जमीनों पर नक्सलियों ने कब्ज़ा कर लिया तो जमीन बचाने के लिए जहानाबाद चले गए । इधर फणी दा की फिल्में  असफल होने लगी ।उन्होंने मुझ से कहा कि अब तुम भोजपुरी फिल्म मत करो। मै तुमको और अपर्णा सेन को लेकर हिन्दी फिल्म बनाऊंगा। लेकिन फणी दा का यह सपना साकर नहीं हो पाया ।कई सालों बाद मुंशी जे औए और फिर से मैला आँचल को लेकर फिल्म बनाने को अग्रसर हुए। समय बदल चूका था । फणी दा थे नहीं तो पटकथा लेखक नवेंदु घोष को निर्देशन की जिम्मेदारी सौंपी गई और मेरे बदले धर्मेदं को हीरो के रूप में कास्ट किया गया । फिल्म की शूटिंग हुई ।लेकिन फिल्म एक फिक्शन न होकर डाक्यूमेंट्री बन गई ।नवेंदु जी ने इतना शूट किया था कि एडिट करना मुश्किल हो गया। इसलिए फिल्म नहीं बनी।

बाद में श्री गोपाल जी ने कई भोजपुरी फिल्मों में हीरो बने । लेकिन हिन्दी सिनेमा से सरोकार नहीं बन पाया । उसका कारण बताते हुए वो कहते हैं कि मै हीरो बन चुका था । छोटा रोल नहीं करना चाह रहा था । परीक्षित साहनी –विधा सिन्हा और मै –रीता भादूडी की जोड़ी बनी थी फिल्म होनहार में । लेकिन इससे पहले कि फिल्म रीलिज हो पाती परीक्षित और विधा जी की कई फिल्में नहीं चलीं जिसका खामियाजा हमारी फिल्म को भुगतना पड़ा । होनहार रीलिज नहीं हो पाई। मै उसे अपनी किस्मत मानता हूँ।

उपकार सिनेमा और बिहार सरकर /सिनेमा को लेकर बिहार सरकार का रवैया

उपकार सफल हो चुकी थी और सारे राज्यों ने उसे टैक्स फ्री कर दिया था। मुझे निर्माताओं ने कहा कि तुम बिहार जाओ और सरकार से बात करो कि उसे टैक्स फ्री किया जाए । मै पटना आया कुछ दिनों तक रुका । मेरे रहने –खाने का सारा इंतजाम किया निर्माताओं ने । दारोगा राय उस समय बिहार के मुख्यमंत्री थे । उनसे बात हुई ।वो मान गए । उनकी पत्नी ने कहा कि मै धरती कहे पुकार के फिल्म देखना चाहती हूँ वो भी अपने घर में। अब क्या किया जाए । तो मैंने उनके घर में ही फिल्म दिखाने के सारी व्यवस्था की । दारोगा राय जी ने कहा कि आप जाए ..आपको चिठ्ठी मिल जाएगी । मै खुश होकर लौटा । कुछ दिनों बाद चिठ्ठी आयी कि बिहार की वित्तीय व्यवस्था ठीक नहीं है इसलिए हम टैक्स फ्री नहीं कर पायेंगे । क्या कहुं मेरी बहुत बेइजती हुई ।सब जगह टैक्स फ्री हो गया था। पता नहीं बिहार को क्या हो गया था ? बिहार का सिनेमा के प्रति हमेशा एप्रोच नकारात्मक ही रहा । इसलिए अपने यहाँ अन्य राज्यों के मुकाबले सिनेमा का हाल अच्चा नहीं है ।

-जितेंद्रनाथ झा जीतू

 

 

 

 

 

 

 

 

 

  

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